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________________ ४ सप्तभंगीतरंगिणी भा. टी. यह न्यायका अपूर्व ग्रन्थ है इसमें ग्रंथकर्ता श्रीविमलदासजीने स्यादस्ति, स्यान्नास्ति आदि सप्तभंगी नयका विवेचन नव्यन्यायकी रीति से किया है । स्याद्वादमत क्या है यह जाननेकेलिये यह ग्रंथ अवश्य पढना चाहिये । न्यों. १ रु. 1 ५ बृहद्रव्यसंग्रह संस्कृत भा. टी. श्रीनेमिचन्द्रस्वामीकृत मूल और श्रीब्रह्मदेवजीकृत संस्कृतटीका तथा उसपर उत्तम बनाई गई भापाटीका सहित है इसमें छह द्रव्योंका स्वरूप अतिस्पष्टरीति से दिखाया गया है । न्यों. २ रु. ६ द्रव्यानुयोगतर्कणा इस ग्रंथ में शास्त्रकार श्रीमद्धोजसागरजीने सुगमतासे मन्दबुद्धिजीवोंको द्रव्यज्ञान होनेकेलिये 'अथ, “गुणपर्ययवद्द्रव्यम् " इस महाशास्त्र तत्त्वार्थसूत्रके अनुकूल द्रव्य - गुण तथा अन्य पदार्थोंका भी विशेष वर्णन किया है और प्रसंगवश 'स्यादस्ति' आदि सप्तभंगोंका और दिगंबराचार्यवर्य श्रीदेवसेनखामीविरचित नयचक्रके आधारसे नय, उपनय तथा मूलनयोंका भी विस्तारसे वर्णन किया है । न्यों. २ रु. ७ सभाष्यतत्वार्थाधिगमसूत्रम् इसका दूसरा नाम तत्वार्थाधिगम मोक्षशास्त्र भी है जैनियोंका यह परममान्य और मुख्य ग्रन्थ है इसमें जैनधर्मके संपूर्णसिद्धान्त आचार्यवर्य श्री उमाखाति (मी) जीने वड़े लांघवसे संग्रह किये हैं । ऐसा कोई भी जैनसिद्धान्त नहीं है जो इसके सूत्रोंमें गर्भित न हो । सिद्धान्तसागरको एक अत्यन्त छोटेसे तत्त्वार्थरूपी घटमें भरदेना यह कार्य अनुपमसामर्थ्यवाले इसके रचयिताका ही था । तत्त्वार्थके छोटे २ सूत्रोंके अर्थगांभीर्यको देखकर विद्वानोंको विस्मित होना पडता है । न्यों. २ रु. 1 ८ स्याद्वादमंजरी संस्कृ. भा. टी. इसमें छहों मतोंका विवेचनकरके टीकाकर्ता विद्वद्वर्य श्रीमल्लिषेणसूरीजीने स्याद्वादको पूर्णरूपसे सिद्ध किया है । न्यों. ४ रु. ९ गोम्मटसार (कर्मकाण्ड ) संस्कृतछाया और संक्षिप्त भाषाटीका सहित यह महान् ग्रन्थ श्रीनेमिचन्द्राचार्यसिद्धान्तचक्रवर्तीका बनाया हुआ है, इसमें जैनतत्त्वोंका खरूप कहते हुए जीव तथा कर्मका खरूप इतना विस्तारसे है कि वचनद्वारा प्रशंसा नहीं हो सकती देखनेसे ही मालूम होसकता है, और जो कुछ संसारका झगड़ा है वह इन्हीं दोनों ( जीव-कर्म) के संबन्धसे है सो इन दोनोंका स्वरूप दिखानेकेलिये अपूर्व सूर्य है । न्यों. २ रु. । इसका दूसरा पूर्वभाग ( जीवकाण्ड ) भी शीघ्र ही मुद्रित होनेवाला है ॥ १० प्रवचनसार - श्री अमृतचन्द्रसूरिकृत तत्त्वप्रदीपिका सं. टी., " जो कि यूनिवर्सिटीके कोर्स में दाखिल है” तथा श्रीजयसेनाचार्यकृत तात्पर्यवृत्ति सं. टी. और बालावबोधिनी भाषाटीका इन तीन टीकाओंसहित जो कि आपकी समक्ष उपस्थित है इसके मूलकर्ता श्रीकुन्दकुन्दाचार्य हैं । यह अध्यात्मिक ग्रन्थ है । न्यों. ३ रु. 1 प्रन्थोंके मिलनेका पत्ताशा. रेवाशंकर जगजीवन जौहरी. ऑनरैरी व्यवस्थापक श्रीपरमश्रुतप्रभावकमंडल जोहरीबाजार खारा कुवा बम्बई नं. २ ॥
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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