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________________ विज्ञापन | S विदित हो कि स्वर्गवासी तत्वज्ञाता शतावधानी कविवर श्रीरायचन्द्रजीने अतिशय उपयोगी और अलभ्य ऐसे श्रीउमाखाति (मी) मुनीश्वर श्रीकुन्दकुन्दाचार्य, श्रीनेमिचन्द्राचार्य, श्रीअकलङ्कखामी, श्रीहरिभद्रसूरी, श्रीहेमचन्द्राचार्य आदि महान् आचाय के रचेहुए जैनतत्त्वग्रन्थोंका सर्वसाधारणमें प्रचार करनेकेलिये श्रीपरमश्रुतप्रभावकमंडलकी स्थापना कीथी; जिसके द्वारा उक्त कविराजके चिरकालस्मरणार्थ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालाके नामसे अतिशय प्राचीन ग्रन्थ प्रगट होकर आजपर्यंत तत्त्वज्ञानाभिलाषी भव्यजीवोंको आनंदित कर रहे हैं ॥ इस शास्त्रमालाकी योजना विज्ञपाठकोंको दिगम्बरीय तथा श्वेताम्बरीय उभयपक्षके ऋषिप्रणीत सर्वसाधारणोपयोगी उत्तमोत्तम ग्रन्थोंके अभिप्राय विदित होनेकेलिये कीगई है । इसलिये आत्मकल्याणके इच्छुक भव्यजीवोंसे प्रार्थना है कि इस पवित्र शास्त्रमालाके ग्रन्थोंके ग्राहक बनकर अपनी चललक्ष्मीको अचल करें और तत्त्वज्ञानपूर्ण जैनसिद्धान्तोंका पठन पाठन द्वारा प्रचारकर हमारी इस परमार्थयोजनाके परिश्रमको सफल करैं । तथा प्रत्येक सरखतीभण्डार, सभा और पाठशालाओं में इनका संग्रह अवश्य करना चाहिये ॥ इस शास्त्रमालाकी प्रशंसा मुनिमहाराजोंने तथा विद्वानोंने बहुत की है उसको हम स्थानाभावसे लिख नहीं सकते । और यह संस्था किसी स्वार्थकेलिये नहीं है केवल परोपकारके वास्ते है । जो द्रव्य - आता है वह इसी शास्त्रमालामें उत्तमग्रन्थोंके उद्धारकेवास्ते लगाया जाता है ॥ इति शम् ॥ रायचन्द्र जैनशास्त्रमालाद्वारा प्रकाशित ग्रन्थोंकी सूची । १ पुरुषार्थसिद्ध्युपाय भाषाटीका यह श्रीममृतचन्द्रखामी विरचित प्रसिद्ध शास्त्र है इसमें आचारसंबन्धी बडे २ गूढ रहस्य हैं नीशेप कर हिंसाका खरूप बहुत खूबीकेसाथ `दरसाया गया है, यह एक वार छपकर विकगयाथा इसकारण फिरसे संशोधन कराके दूसरीवार छपाया गया है । न्यों. १ रु. २ पञ्चास्तिकाय भा. संस्कृ. टी. यह श्री कुन्दकुन्दार्यकृत मूल और श्रीअमृतचन्द्रसूरौ - संस्कृतटीकासहित प्रसिद्ध शास्त्ररल है. इसमें जीव, अजीव, धर्म, अधर्म और आकाश इन द्रव्योंका तो उत्तम रीति से वर्णन है तथा कालद्रव्यका भी संक्षेपसे वर्णन किया गया है । इसकी भाषा टीका स्वर्गीय पांडे हेमराजजीकी भाषाटीकाके अनुसार नवीन सरल भाषाटीकामें परिवर्तन की गई है । न्यों. १ ॥ रु. ३ ज्ञानार्णव भा. टी. इसके कर्ता श्रीशुभचन्द्रखामीने ध्यानका वर्णन बहुत ही उत्तमतासे किया है । प्रकरणवश ब्रह्मचर्यव्रतका वर्णन भी बहुत दिखलाया है । न्यों. ४ रु.
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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