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________________ उत्तराध्ययननी सद्याय. (२३३) ॥अथ सप्तदश पापश्रमणध्ययन सद्याय प्रारंज | ॥श्रादि तुं जोनें जीडा ॥ ए देशो : श्रीजिनधर्म सुणो खरो, सही दीक्षा सार । नियबंदे जे संचरे, ते पुरुष गमार ॥१॥.वीरजिनेसर उप दिशे । ए बांकणी॥ पाप श्रमण जे तेह ।। सत्तरमा अध्ययनमां, मुनि नां ख्यो जेह वीणाशाज्ञानदायक निज गुरु तणो, लोपक जे साध ॥ पंच प्र माद वशे पड्यो, चारित्र न समाधि ॥ वी० ॥ ३॥ कंठ लगें लोजन नवु, करी सूवे जेह ।। रात दिवस विकथा करे, गुणनी नहिं रेह ॥ वी० ॥४॥ नव वेहू चूकी करी, करे काय कलेश ॥ विपमिश्र तेहने परहरी, धरो सुगुण विशेष ॥ वी॥५॥ विजयदेव गुरु पाटवी, विजयसिंह सूरीश ॥ शिष्य उदय कहे पुण्यथी, पहोंचे सुजगीश ॥ वी० ॥ ६॥ इति ॥ __॥अथाष्टादश संयतिराजाध्ययन सचाय प्रारंजः॥ । लोकिक वाडानो ॥ ए देशी॥ कंपिलपुरनो राजीयो, जग गाजियो रे संजय नरराय के॥ पाय नमे नर जेहना रे, पहोंचे नडवाय के ॥१॥धन धन संजय नरवरुपए आंकणी ॥जगसुरतरु रे शासन वनमांहि केवांह ग्रही जवकूपथी, दुःखरूपथी रे जिनधर्म समाहि के ॥ धणा॥ एकदिन केशरी काननें, रस वाह्यो रे जाये मृगया देत के ॥ त्रास पमाडे जंतुने, एक मृगलो रे उहव्यो तिण खेत के । ध० ॥३॥ तीरपीडा तडफड्यो, पड्यो हरणलो रे मुनिवरनी पास के ॥ ते देखी चिंता करे, राय खामतो रे मुनि तेजे त्रास के ॥ ध० ॥ ४ ॥ राय कहे मुनिरायने, हूं तो तुम्ह तणो रे अपराधी एह केराख राख जगवंधु तुं, मुफ नांखो रे जिन धर्म सरेह के ॥ध० ॥५॥ ध्यान पारी मुनिवर जणे, राय का हणे रे हरि णादिक जीव के ॥ निरपराधी जे बापडा, पाडता रे पुःखीया वहुरीव के ॥ ध॥६॥ य गय रथ पायक वली, धन कामिनी रे कारिमुं सवि जाण के ॥ धर्मज एक साचो अडे, एम निसुणी रे तेह संजय राण के ॥ ध० ॥ ७॥ गर्दजाली पासें लीये, जिनदीदा रे संसारी सार के ॥ गुरु आदेशे अनुक्रमें, पुहवीतले रे करे उग्रविहार के ॥ ३० ॥ ॥ मार्गे एक मुनिवर मल्यो, तेह साथें रे करे धर्म विचार के ॥ जिनदीदा पामी तस्यो, जरतेसर रे चक्री सनतकुमार के ॥ध ॥ए ॥ सगर मघव संतीअरो, कुंथू पद्म अने हरिषेण नरिंद के ॥ जयचक्री नगश् नमी, करकंफूरे दो ३०
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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