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________________ (२३). . सद्यायमाला. । दीक्षा लीये रे,तिम वली राणी राय ॥ मोए ॥ए खटजण थया केवली | रे, पहोता शिवपुर:माय ॥ मो॥ ते॥५॥ विजयदेवगुरु पाटवी रे, श्रीविजयसिंह मुनिराय । मो० ॥ तेह तणो शिष्य उपदिशे रे, उदयवि । जय उवकाय॥ मो॥ ते॥६॥इति ॥ . . +: . ." ॥अथ पंचदश निकुकाराध्ययन-सद्याय प्रारंजः॥ . . ॥ रुक्मिणी रूप रंगिली नारी ॥ ए देशी ॥ तप करतां मुनिराजीया लाला, न करे नोग नियाण ॥ मुनि मारग सुधो धरे लाला, ते बोल्या गुण खाँणी ॥ मुनीश्वर तो.निकु गुण शुरु ॥ पन्नरमा अध्ययनमा ला ला, श्म जांखे संबुछ-मु॥१॥ मंत्र तंत्र नवि केलवे लाला, तस न राग न रोष ॥ शूरा परिसह जीतवा लाला; चारित्रना नहि दोष ॥ मु" ॥ ॥२॥ परिचय नही गृहस्थनो' लाला, अरसविरसं आहार ।। पूजादिक वांडे नही लाला, साचा ते अणगार ॥मु॥ ते॥३॥इणिपरि मुनिगुण सांजली लाला, परखी किरिया नाण ॥ साधुपंथ तुम्हे आदरो लाला, त्रण तत्त्वना जाण ॥ मु॥ ते ॥ ४ ॥ विजयदेव गुरु पाटवी लाला, विजयसिंह गुरु लीह ॥ शिष्यउदय कहे एहवा लाला, मुनि प्रत पोनिशिदीह ॥ मु॥ ते॥५॥इति ॥ . . ॥ अथ षोडश ब्रह्मचर्यसमाधि अध्ययन सद्याय प्रारंजः॥ ॥ हस्तीनागगुर ॥ ए देशी ॥ ब्रह्मचर्यनां दश कह्यां, स्थानक श्रीवीर जिणंद रे ॥ अध्ययने ते सोलमे, जे पाले शुभमुणिंद रे॥१॥ जेह पाले शुरू मुणिंद, संवेग रस नाविया गुणगेह ए ॥ गुणगेह निरेह निराग, विषयदल जीपत्तां सुविदेह रे ॥ ए आंकणी ॥ पशुपंग नारी विना, वस ही पहिली निरधार रे ॥ भासण तिणि नवि बेसीयें, बेसे जिण आसन नारी रे॥ बैन । सं॥२॥ नारीकथा नवि कीजी, नवि निरखि इंजिय तास रे॥ नीतीपटंतर टालीये, नवि चीतियें पूर्वअन्यास रे ॥ न ॥ संग ॥३॥ सरस नोजन नवि कीजियें, नवि लिजिये अधिक आहार रें। उनट वेश न धारीये, तरिये इण संसार रे ॥ ॥ सं॥४॥ उदयं विजय वाचक जणी, शीलवंत ते पुरुष रतन्न रे॥श्रीविजयदेव गुरु पार्ट वी, श्री विजयसिंह गुरुधन्न रे । तेतो विजयसिंह गुरु धन्य रें। संवेगरस नाविया गुणगेह ए ॥५॥इति ॥ - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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