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________________ ' (२३४) “सधायमाला. . . - - मुह मुणिचंद के ॥ध॥ १०॥ महबल राय उदायणो, वली राजारे द शारणजज के ॥नाए क्रिया पोते करि, एतो तरीया रे संसार समुड के ॥ध ॥ १९॥ विजय जयदेव सूरीश्वरू, पट्टोधर रे विजयसिंह गुणखाण के ॥ उदयविजय कहे ए कह्यो, अध्ययनें रे अढारमे जाण के॥ध ॥१॥ ॥अथ एकोनविंश मृगापुत्राध्ययन सद्याय प्रारंजः॥ ॥शारद बुधदायी सेवक । ए देशी ॥ ढाल ॥ सुग्रीव नयर वर, वन वाडी आराम ॥ बलजा नरेश्वर, राज करे गुणधाम जाणी सरखी, रा णी मृगा अजिराम ॥ मकरध्वज सुंदर, कुंअर बलश्री नाम ॥१॥त्रु०॥ बलश्री नाम कुंवर अति सुंदर, जीत्यो काम विकार ॥ संयम ले कर्म ख पेश पाम्यो नवजल पार ॥ उंगणीशमे अध्ययने जिनवर, वीर दीये उप देश ॥ लणतां गुणतां नवनवना, नासे पाप कलेश ॥२॥ ढाल ॥ एकदि न वरमंदिर, अंतेजर परिवार ॥ परवरियो पेले, नयर मकार कुमार॥ दी | ठो तव मुनिवर यायें मलपंत ॥ तस ऊहापोहे, जातिसमरण हुँत ॥३ ॥७॥ जातिसमरण पामी देखे, पूव नव संबंध ॥ पंचमहाव्रत सांजरे वली, चमग पुःख प्रबंध ॥ मात पिता आगल जश् बोले, कुःख अनंती | वार ॥ जे जे में पाम्यां ते कहेतां, किमही न आवे पार ॥५॥ ढाल ॥ सं सार असार ए, दीसे मलकार ॥ संबल विण वाटें, जातां खदातार ॥बहुजनम मरण जय, नरयतिरिय फुःख गण ॥ तिहां बलता घरथी, सार ग्रहे ते जाण ॥५॥त्रु॥ सार ग्रहे ते जाण विचारी, आपणपुं तार शुं॥द्यो प्रजु तुम्ह आदेश अम्हे, हवे संयमगुण धारशुं ॥ शीत ताप. बुह तृषा, अनंती फुःसह संबलि रूख ॥ पूतली अग्नि वर्ण आलिंगी, दीगं नरके पुःख ॥ ६॥ ढाल | पुःखथी निकलवा, मृगापुत्र नरसिंह ॥ मावित्र आदेशे, दीक लहे मुनि लीह ।। अनुक्रमें ते मुनिवर, शिव पुर राज्य लहंत ॥ जिहां नाणदंसण वली, परमाणंद अनंत ॥ ७॥ त्रु॥ परमाणंद अनंत ते लहीयें, साधुतणा गुण धरता॥श्री जिनशासन उत्तम पामी, सूधी किरिया करता ॥ किरियानो ते आगर गणधर, विजयदेव पटधार ॥ विजयसिंह गुरराज विराजे, शिष्य उदय जयकार || इति।। ॥अथ विंशतितम अनाथीराय अध्ययन सद्याय प्रारंजः ॥ ॥जोतां रे जतां रे कानन सघj ॥ ए देशी ॥ मगधदेश राजगृही, - - : . - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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