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________________ (१) फरता दीगमां आवे बे, ज्यारे वरसाद रही जाय ले ने तकको पडे हे त्यारे तेउसांनो एक पण दीगमा आवतो नथी.एने जूनाग अथवा अलसीयां पण कहे के. (लहगाई के०) रोटली प्रमुख पकावेढुं अन्न वासी रही गयाथी केटलाएक काले तेमां जे जीव पडे में तेने लालीया कहे , (मेहरि के०) काष्ठमा जे कीमा थाय ने ते, (किमि के०) ए पण एक जातना कीमा होय जे ते उदरमा उत्पन्न थायः बे, अथवा गुदप्रदेशने विषे हरस थाय बे तथा गुंबमां वगेरेना दतने विषे जे कीमा थाय ने तेने कृमि कहे . (पूछरगाके) ए जीवपाणीमा उत्पन्न थाय बे, ए जीवोनों वर्ण रातो होय ने अने मुख कालु होय . एने कही जाषामां पूरा कहे ; अने (माश्वाहाई के०) मातृवाहांदिक एने चूडेल. पण कहे ने, मूल गाथामां आदि शब्द लेतेयादि शब्दथी मनुष्यना अंगमांजे वाला थाय बे ते पण लेवा, इत्यादिक (बेंदिय के०) बेइजिय जीव जाणी लेवा. ए जलमां तथा स्थलमा उत्पन्न श्राय . ते अनेक प्रकारना जे. एउने स्पर्शनें. जिय तथा रसनेंजिय ए. बे इजियो होय २ ॥१५॥
SR No.010850
Book TitleJiva Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages97
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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