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________________ (१०) गाथा १५ मीना बूटा शब्दना अर्थ. संख-शंख. कवड्डय - कोसी. गंकुल- गंगोला. जलोय - जलो. चंदग - चंदनक, अलस-कालसीयां. लहगाई - लालीया जीव. हरि - मेर ( लाककामां यंता ) किमि = कृमि. रिया, पूचरगा-पूरा. अक्ष. | माइवाहाई- चूमेल आदि. अर्थ:- ( संख के०) दक्षिणावर्त्त प्रमुख मोटा तथा नाना शंख होय बे ते, ( कबड्डय के० ) कपर्दक अथवा कमी अनेकोमा थाय बे ते, (गंडुल के० ) गंगोला एने गगुता कड़े बे, ए उदरमां मोटा कृमियां उत्पन्न थाय बे ते जाणवां, (जलोय के० ) जलो ए शरीरनी उपर फोमा वगेरे आव्या होय त्यारे तेनी उपर मूक्याथी ते जग्यानुं रक्त शोषण करी लीए बे. ते, ( चंदग के० ) एने सिद्धांतोमां अक्ष एवा नाम थी प्रतिपादन कर्यु बे, एनेरिया पण कहे बे, ते साधु स्थापनामा राखे बे. (अलस के०) वर्षाकालसां वृष्टि याय बे ते वखते पृथिवीमांथी सर्पना श्रकारे लाल रंगवाला जे ति पातला जीवो उत्पन्न थाय बे, ते ज्यांसुधी वरसाद तो होय त्यांसुधी ज्यां त्यां घणा
SR No.010850
Book TitleJiva Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages97
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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