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________________ नैननाणित को महत्ता जनेतर गगितनो ने इन जटिल मिद्धान्नो के ऊपर विचार मी नहीं क्यिा है। आधुनिक गणितज्ञ श्रद्धच्छेद प्रक्रिया को लरिक्य (Logarithm) के अन्तर्गत मानते है, पर इस गणित के लिए एक अक टेबुल साय रखनी पडनी है, तनी अच्छंदो से राम का जान कर सकते हैं। परन्तु अनागों ने बिना वीजगन गगयय लिये अको द्वारा ही अर्द्धन्टदो ने रागि' का ज्ञान क्यिा है। (१) देयगगि-पग्विनित गनि (Substituted) के अदच्छेदों का इप्टमि के अर्द्धच्छेदों में भाग देने पर जो लब आवे उनका अनीप्ट अनुच्छेद गनिमें भाग देने में जो लब्ध पाये, उतनी ही जगह इप्ट गमि को रख कर परम्पर गुणा करने ने अच्छेटोने गमिवानान्होजाता है। उदाहरणदेवरामि (२) इसकी अर्द्धच्छेदरागि १, इष्ट रागि १६,इनकी अदच्छेद गमिअमोष्ट पद्धंच्छंद गिइन अर्बुच्छेदी ने राशि निकालनी है। ४:१-४, ६-४-२, १६X१=२५६ गनि आठ लुच्छेदो को है। अर्द्धच्छेद के गणित मे निम्न सिद्धान्त और मो महत्त्वपूर्ण निकलन है। *कxक'क', काxकक- गुण्य गगि के अईन्छेदों को गुगाका गगि के अर्द्धच्छेदो में जोड देनेपर गुणनफलागि के अर्द्धच्छेद आ जाते है । उपर्युक्त सिद्धान इमो ग्यं का द्योतक है। अन्गणित के अनुसार १६ गुन्यरागि, ६४ गुणाकार रामि और गुणनफल गगि १००४३ । गृण्यनशि= (२), गुणाकार ६४%=(२), (२)"x (२)=(0)"गुणनफल राशि २०२८%=(0)" +क': की, काक-का-म! भाज्य रागि के अर्द्धच्छेदों में से भाजक राशि के अईच्छेदो को घटाने में नागफ्न राशि के अर्द्धच्छेद होने है । अकगणित के अनुसार नाज्य राशि २५६, नाजक और भागफल ६४ है । २५६ भाज्यरागि=(२)', भाजक (२), (२) (२) (२), भागफन्ट रागि ४=(0)=(२) (कम) =क., इस सिद्धान्त को जैनाचार्यों ने अझुद के गणित में लिखा है कि विन्लनरागिविभाजितरागि (Distubuted number) को देवरागि-परिवर्तित गि (substituted number) के अर्द्धच्छेदो के नाच गुणा करने ने जो रागि आनी है वह उत्पन्न (resulting number) के अर्द्धच्छेदों के वरावर होती है। न्यास-विभाजितरामि ४, परिवनितरागि १६, उत्पन्नगगि ६५५३६ है। पग्वितितरागि १६-(२), (२)=(२)", उत्सनराशि :५५३६(२)" 5(क)x (क)क, विरलन-विभाजिन राशि के अर्द्धच्छेदो को देयगगि के अदच्छेदो के अर्द्धच्छेद में जोडने में उत्पन्न राशि की वर्गशाला का प्रमाण पाता है। विभाजिनगगि ४, परिवर्तितगमि और उत्पन्नरागि ६५५३६ है। विभाजितरामि ४= (२), परिवर्तितरागि १६, (२१) =(२), ५५३% उत्पन्नरागि= (४) । 'दिण्णच्छेदेणवहिदइट्ठच्छेदेहिं पयदविरलण भजिदे । लद्धमिदइट्टरासीणपणोण्णहदीए होदि पयद घणम् ॥ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया नं० २१४ * गुणयारद्धच्छेदा गुणिज्जमाणस अद्धछेदजुदा । लद्धम्सद्धच्छेदा अहियस्स छेदणा गयि ।।-त्रिलोकमार गाया न० १०५ भिज्नस्सद्धच्छेदा हारद्धच्छेदणाहि परिहीणा। अद्धच्येदमलागा लद्धस्स हवति सन्चत्य ॥-त्रिलोकमार गाया न० १०६ I विरलिज्जमाणारामि दिण्णसद्धच्छिदीहिं संगणिदे। अद्धच्छेदा होंति दु सन्वत्युप्पण्णरामिस्स ॥-त्रिलोकमार गाथा नं. १०७ विरलिदरासिच्छेदा दिग्णद्धच्छेदयेदसं मिलिदा ।। वग्गसलागपमाण होंति ममुप्पण्णरामिस्म ॥-त्रिलोकसार गाथा न० १०८
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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