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________________ प्रेमी-अभिनंदन-ग्रंथ ७१८ उत्तराध्ययन सूत्र मे द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, षष्ठम और द्वादशम वर्गात्मक शक्तियो (powers) के लिए वर्ग, धन, वर्ग-वर्ग, घन-वर्ग और धन-वर्ग-वर्ग शब्दो का प्रयोग मिलता है । अनुयोगद्वार सूत्र १४२वें के अनुसार (क), (क)' क', (क), (क) इत्यादि वर्गात्मक शक्तियो का विश्लेषण होता है। इसी प्रकार वर्गमूलात्मक कककान इत्यादि शक्तियो का उल्लेख भी जैनगणित में किया गया है। गणितसार मग्रह में विचित्र कुट्रोकार एक गणित का प्रकार पाया है, यह सिद्धान्त अक गणित को दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसके अनुसार वीजगणित के वडे-बडे प्रश्न सुलझाये जा सकते है। अन्य भारतीय गणितज्ञो ने जिन प्रश्नो को चक्रवाल और वर्ग प्रकृति के नियमो से निकाला है, वे प्रश्न इम विचित्र कुट्टीकार की रीति से हल किये जा सकते है। अकगणित मे जहाँ कोई भी कायदा काम नहीं करता, वहाँ कुट्टोकार से काम सरलतापूर्वक निकाला जा सकता है। फुटकर गणति में त्रिलोक-सारान्तर्गत १४ धारापो का गणित उच्चकोटि का है, इस गणित पर से अनेक बीजगणित सवधी सिद्धान्त निकाले जा सकते है ।' सक्षेप मे जैन अकगणित को विशेषता बीजगणित सम्बन्धो सिद्धान्तो के सन्निवेप की है, प्रत्येक परिकर्म सूत्र से अनेक महत्त्वपूर्ण बीजगणित के सिद्धान्त निकलते है। जैन रेखागणित-यो तो जैन अकगणित और रेखागणित आपस में बहुत कुछ मिले हुए है, पर तो भी जैन रेखागणित मे कई मौलिक वाते है । उपलब्ध जैन रेखागणित के अध्ययन से यही मालूम होता है कि जैनाचार्यों ने मन्स्यूरेशन की ही प्रधानता रक्खी है, रेखामओ की नही । तत्त्वार्थसूत्र के मूलसूत्रो में वलय, वृत्त, विष्कम्भ एव क्षेत्रफल आदि मैन्स्यूरेशन सम्बन्वी वातो की चर्चा सूत्र रूप से की गई है। इसके टोका अन्य भाष्य और राजवात्तिक मे ज्या, चाप, वाण, परिधि, विष्कम्भ, विस्तार, वाहु एव धनुष आदि विभिन्न मैन्स्यूरेशन के अगो का साङ्गोपाङ्ग विवेचन किया गया है। भगवतीसूत्र, अनुयोगद्वारसूत्र, सूर्यप्रज्ञप्ति, एव प्रैलोक्यप्रज्ञप्ति मे त्रिभुज, चतुर्भुज, आयत, वृत्त और परिमण्डल (दीर्घवृत्त) का विवेचन किया है। इन क्षेत्रो के प्रतर और घन ये दो भेद बताकर अनुयोगद्वार सूत्र में इनके सम्बन्ध में वडी सूक्ष्म चर्चा की गई है । सूर्यप्रज्ञप्ति मे समचतुरस्र, विषमचतुरस्र, समचतुष्कोण, विपमचतुष्कोण, समचक्रवाल, विषमचक्रवाल, चकाचक्रवाल और चक्राकार इन आठ भेदो के द्वारा चतुर्भुज के सम्बन्ध में सूक्ष्म विचार किया गया है। इस विवेचन से पता लगता है कि प्राचीनकाल में भी जैनाचायों ने रखागणित के सम्बन्ध में कितना सूक्ष्म विश्लेषण किया है। ____ गणितसार सग्रह मे त्रिभुजो के कई भेद बतलाये गये है तथा उनके भुज, कोटि, कर्ण और क्षेत्रफल भो निम्न प्रकार निकाले गये है। अकग त्रिभुज मे अक, अग भुज और कोटि है, क ग कर्ण है तथा <क प्रग समकोण है, असमकोण विन्दु से क ग कर्ण के ऊपर अम लम्ब गिराया गया है। • अक-कग कम, अग=क ग ग म : अक+अग=क ग क म क ग गमक ग (क म+ग म) क ग क ग=क ग,Vक ग =/अक+अग=Vभु+को'=/क', Vक-भु = को , Vक'-को'=/भु 'देखिये-'श्री नेमिचन्द्राचार्य का गणित' शीर्षक निबन्ध जनदर्शन व ४, अ० १-२ में।।
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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