SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 689
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रेमी-अभिनदन-प्रथ नये युग में नये अर्थ - शास्त्र से काम चलेगा, पुराने से नही । चार बीघे जमीन का दूसरा नाम है घर-वार । घर वह जिसमे हम रहते हैं । घरवार वह, जिसमें हम सुख से रहते है, यानी उसमें हम कमा-खा भी लेते है । ६३६ आदमी, भूचर थलचर प्राणी है । वह हवा में भले ही 'उड ले और सागर में भले ही तैर ले, पर जीता जमीन से है और मर कर उसी में मिल जाता है । वह जमीन से ही जियेगा और यह ही उसका जीने का तरीका ठीक माना जायगा । जमीन उसे जो चाहे करने देगी और जी चाहे जैसे रहने देगी । उसे हर तरह आजाद कर देगी । वह ज़मीन से हट कर ज़वर मे ज़ेर हो जायेगा । आज़ादी खोकर गुलामी बुला लेगा । आजादी के साथ सुख का प्रत हो जावेगा । दुख प्रा जुटेगा और वह देवता से कोरा दुपाया रह जायेगा । जव हमारे पास ज़मीन थी हम सुखी थे और हमने वेद रच डाले । दशरथ और जनक हल चलाते थे, कौरव और पाडव खेत जोतते-त्रोते थे । वे श्राज भी जीवित है और हमें पाठ दे रहे हैं। सुख जमीन में है श्रौर व्ही से मिलेगा। जिस दिन तुमने जमीन लेकर फावडा उठाया, उसी दिन तुम्हारा सुख तुम्हारे सामने हरी-हरी खेती वन कर लहराया और जिस दिन उसी खेती से लगी अपनी छोटी सी कुटिया में बैठ कर चर्खा चलाते चलाते तुमने वेद से भी ऊँची ज्ञान की तान छेड़ी कि सुख अप्सरा का रूप रख तुम्हारे सामने नाचने लगेगा । फिर किस सेठ की मजाल है जो तुमसे आकर कहे कि प्रायो, मेरी मिल मे काम करना या मेरी मिल के मैनेजर बनना। कौन राजनेता तुमको सिपाही बनाने या वजारत की कुर्सी पर बिठाने की सोचेगा ? और कौन सेनापति तुमको फौज में भर्ती होने के लिए ललकारेगा ? ये सब तो तुम्हारे सामने दुजानू हो ( दडवत कर) सुख की भीख मागेगे। सच्चा गायक हुक्म पाकर राग नही छेडता, सच्चा चित्रकार रुपयो की खातिर चित्र नही बनाता। गायक गाता है, अपनी लहर में आकर । चित्रकार चित्र वनाता अपनी मौज मे आकर । ठीक इसी तरह तुम भी वह करो, जो तुम्हारा जी चाहे, जिसमें तुम खिल उठो, जिसमें तुम कुछ पैदा कर दिखाओ, जिसमे तुम कुछ बना कर दे जाओ। ऐसा करने पर सुख तुम्हारे सामने हाथ बाँधे खडा रहेगा । आजकल 'मेहनत बचाओ', 'वक्त बचाओ' की आवाज़ चारो ओर से आ रही है। मेहनत बचाने वाली और वक्त बचाने वाली मशीने आयेदिन गढी जा रही है। परम पवित्र श्रम को कुत्ते की तरह दुर्दुराया जा रहा है । समय जिसकी हद नहीं, उसके कम हो जाने का भूत सवार है । एक ओर समय के निस्सीम होने पर व्याख्यान दिया जा रहा है और दूसरी ओर गाडी छूट जाने के डर से व्याख्यान अधूरा छोडकर भागा जा रहा है। यह क्या । एक ओर श्रम की महत्ता पर बडे-वडे भाषण हो रहे है, दूसरी ओर उसी से बच कर भागने की तरकीबे सोची जा रही है । खूब काम के वारे में लोगो का कहना, है " काम करना पडता है, करना चाहिए नही ।" उन्ही का खेल के बारे में कथन है, "खेलने को जी चाहता है, पर वक्त ही नही मिलता ।" इन विचारो मे लोगो का क्या दोष ? समाज का दोष है | हर एक से वह काम लिया जा रहा है, जिसे वह करना नही चाहता और वह भी इतना लिया जाता है कि उसे काम नाम मे नफरत हो जाती है । उसको सचमुच खेल में सुख मिलता-सा मालूम होता है । 1 काम में खेल की अपेक्षा हजार गुना सुख है, पर उस सुख को तो समाज ने मिलो को भेट चढा दिया । आदमी को मशीन बना दिया। मशीन सुख कैसे भोगे ? माली को, किसान को, कुम्हार को चमार को, जुलाहे को, दरजी को, बढई को, मूर्तिकार को, चित्रकार को, उनकी प्यारी-प्यारी पत्नियाँ रोज खाना खाने के लिए खुशामद करती देखी जाती है । वे काम से हटाये नही हटते । कभी-कभी तो इनने तल्लीन पाये जाते हैं कि वे सच्चे जी से अपनी पत्नियो से कह बैठते है, "क्या सचमुच हमने अभी साना नही खाया ?" यह मुन उनकी सहधर्मिणी मुम्करा देती है और उनके हाथ से काम के प्रोज़ार लेकर उन्हें प्यार मे साना खिलाने ले जाती हैं सुख यहाँ है । यह सुख दफ्तर के बाबू को कहाँ ? मिल के मालिक को कहाँ ? सिपाही को कहाँ ? उनकी वीवियाँ तो वाट जोहते - जोहते थक जाती है । एक रोज़ नही, रोज़ यही होता है ।
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy