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________________ ३६ प्रेमी-अभिनंदन-प्रथ प्रत्यक्ष परिचय ने मुझे उनकी अकृत्रिम सरलता की ओर आकृष्ट किया। इसीसे मै थोडे ही दिनो वाद जब वम्बई आया तो उनसे मिलने गया। वे चन्दावाडी में एक कमरा लेकर रहते थे। विविध चर्चा में इतना दूवा कि आखिर को अपने डेरे पर जाकर जीमने का समय न देखकर प्रेमीजी से मैने कहा कि मैं और मेरे मित्र रमणिकलाल मोदी यही जीमेंगे। उन्होने हमें उतनी ही सरलता और प्रकृत्रिमता से जिमाया और परिचयसूत्र पक्का हुआ। फिर तो मेरे लिए वम्बई में आने का एक अर्थ यह भी हो गया कि प्रेमीजी से अवश्य मिलना और नई जानकारी पाना। MATERNITION .६A fe1 4 HK ":" । SAAL .. स्व० हेमचद्र (१९३२) बम्बई मे मेरे चिर परिचित और निकट मित्र सेठ हरगोविन्ददास रामजी रहते है। प्रेमीजी के भी वे गाढ सखा वन गये थे। यहाँ तक कि उन दोनो का वासस्थान एक था या समीप-समीप । घाटकोपर, मुलुन्द जैसे उपनगरों में भी वे निकट रहते थे। अतएव मुझे प्रेमीजी की परिचय-वृद्धि का वडा सुयोग मिला। मै उनके घर का अग-सा बन गया। उनकी पत्नी रमावह्न और उनका इकलौता प्राणप्रिय पुत्र हेमचन्द्र दोनो के सम्पूर्ण विश्वास का भागी मै वन गया। घाटकोपर की टेकरियो में घूमने जाता तो प्रेमीजी का कुटुम्ब प्राय साथ हो जाता। आहार सम्बन्धी मेरे प्रयोगोका कुछ असर उनके कुटुम्ब पर पड़ा तो तरुण हेमचन्द्र के नव प्रयोग में कभी मै भी सम्मिलित
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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