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________________ ४४६ प्रेमी-अभिनदन-प्रथ अग्गेणियपुव्वातो सव्वातो कहेमि ? न इत्युच्यते, पुन्वते, अवरते, धुवे, अधुवे चवणलद्धीणाम पचम वत्यू, तातो पचमातो वत्थूतो कहेमि। किं सव्वातो वीसइपाहुडपमाणमेत्तातो कहेसि, न इत्युच्यते, तम्म पचमस्स वत्युस्स चउत्य पाहुड कम्मपगडी नामवेज्ज, ततो कहेमि । तस्स चउवीस अणुजोगदाराइ भवति । त जहा-- कइ' वेदणा' य फासे' कम्मे पगडी य वर्ण णिवघे", । पक्कम उवक्क मुदए मोक्खै "पुण सकमे लेस्सा" ॥१॥ लेसाकम्मे" लेस्सापरिणामे' तह य सायमम्साते"। दीहे हस्से" भवधारणीय तह पोग्गला" अत्ता"॥२॥ णिहत्तमणिहत्त" च णिक्काइयमणिक्काइय कम्मद्विती"। पच्छिमखघे अप्पाबहुग च सव्वत्यो ॥३॥ त्ति। कि मव्वतो चउवीसाणुोगदारमइयातो कहेसि न इत्युच्यते, तस्स छट्ठमणुगोगदार वधण ति ततो कहेमि। तस्स चत्तारि भेदा। त जहा-बघो, वषगो, वधणीय बधविहाण ति । किं सव्वातो चउम्विहाणयोगदारातो कहेसि ? न इत्युच्यते, वधविहाण ति चउत्यमणुप्रोगदार, ततो कहेमि । तस्स चत्तारि विभागा। त जहा-पगइववो ठिइवधो, अणुभागवधो पदेसवधो त्ति मूलुत्तरपगइभे-यभिन्नो Ixxx(गतकप्रकरणपत्र २) अव जरा सित्तरी प्रकरण की उत्यानिका देखिए 'निस्सद दिट्ठिवायस्स' त्ति परिकम्म १ सुत्त २ पढमाणुप्रोग, ३ पुन्वगय ४ चूलियामय ५ पचविहमूलभेयस्स दिट्ठिवायरस, तत्य चोदसण्ह पुन्वाण बीयानो अग्गेणियपुवायो, तस्म वि पचमवत्यूउ, तम्स वि वीसपाहुडपरिमाणस्स कम्मपगडिणामधेज चउत्य पाहुड तो नीणिय चउवीसाणुप्रोगदारमइयमहण्णवस्मेव एगो विंदू, तमो वि इमे तिण्णि अत्याहिगारा नीणिया, तम्हा 'नीसदो दिट्ठिवायस्म' त्ति भण्णइ। (सित्तरीचुण्णि पन २) कम्मपयडीग्रन्थ तो उक्त विच्छिन्न हुए महाकम्मपडिपाहुडका सक्षिप्त एव सगृहीत अश है, यह बात उसकी उत्थानिका मे चूर्णिकार स्पष्टरूप से लिख रहे है xxxदुस्समावलेण खोयमाणमेहाउ सद्धासवेगउज्जमारभ अज्जकालिय साहुजण अणुग्घेत्तुकामेण विच्छिन्नकम्मपयडिमहागथत्यसवोहणत्य पारद्ध पाइरिएण तग्गुणणामग कम्मपयडीसगहणी णाम पगरण । (कम्मपयडोचूणि पत्र १) इस प्रकार उक्त अवतरणो से यह भलीभांति सिद्ध है कि षट्खडागम, कम्मपयडी, सतक और मित्तरी प्रकरण, इन चारो का मूल स्रोत या उद्गमस्थान एक महाकम्मपयडिपाहुड ही है। प्रसन्नता के साथ आश्चर्य की बात तो यह है कि इनमें से पट्खडागम अपनी विशाल धवला टीका के साथ मूडविद्री के एकमात्र दिगम्बर जैन सरस्वती भडार में सुरक्षित रहा और शेष के तीनो ग्रन्य एकमात्र श्वेताम्बर सरस्वती भडारो मे सुरक्षित रहे । क्या यह बात दोनो सम्प्रदायो की समान विरासत या वपीती की परिचायक नहीं है ? पट्खडागम के कर्ता भगवान् पुष्पदन्त भूतवलि प्राचार्य है और वे विक्रम की दूसरी-तीसरी शताब्दी में हुए है। कम्मपयडी और सतक के कता शिवशर्मसूरि है और विद्वानो ने इनका समय विक्रम को पाचवी शताब्दी माना है। सित्तरी के कर्ता का अभी तक नाम अज्ञात है तथापि उसकी रचना का काल विक्रम की चौथी-छठी शताब्दी के मध्यवर्ती प्रतीत होता है। ____ कम्मपयडी और सतक के कर्ता शिवशर्मसूरि श्वेताम्वर सम्प्रदाय के प्राचार्य माने जाते है, तथापि श्वेताम्बर प्रागमसूत्रो से तथा चन्द्रपिमहत्तर प्रणीत प्रसिद्ध पचसग्रह से कई एक सिद्धान्तो एव मन्तव्यो मे विशेष मिलता है। यहाँ एक वात विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है और वह यह कि जहां पचसग्रह की कितनी ही मान्यताएँ श्वेताम्बर
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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