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________________ षट्खडागम, कम्मपयडी, सतक और सित्तरी प्रकरण ४४७ आगमो से मिलती है वहाँ कम्मपयडी की तत्सम्बन्धी मान्यताएँ दिगम्बर आगमो मे मिलती है । उदाहरण के रूप में यहाँ दो-एक मान्यताप्रो का उल्लेख कर देना अप्रामगिक न होगा। (१) कम्मपयडीकार ने तीर्थकर और आहारकद्विक की जघन्य स्थिति अन्त कोडाफोडी सागरोपम की वतलाई है, मगर श्वेताम्बर पचसग्रहकार तीर्थकर प्रकृति की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष और आहारकद्विक की अन्तर्मुहूर्त्तमात्र ही मानते है। (२) आयुकर्म की आवावा वतलाते हुए कम्मपयडीकार अनपवायुप्को की आवाधा छ मास कहते है मगर पचसग्रहकार पल्योपम का असख्यातवाँ भाग बतलाते हैं। आश्चर्य नही जो कम्मपयडीकार और सित्तरीकार दोनो ही पट्खडागमकार की ही आम्नाय के हो और उनकी कुछ विशेष मान्यताप्रो को श्वेताम्बर आगमो मे प्रतिकूल देखकर ही चन्द्रपिमहत्तर ने कर्मप्रकृति, शतक, सप्ततिका नाम वाले नये प्रकरणो की रचना की हो। कम्मपयडी की वर्तमान में तीन टीकाएँ उपलव्य है, जिनमें सबसे प्राचीन अनात आचार्य-विरचित चूणि है, जो कि सभी विवादस्थ मन्तव्यो मे मूलकार के समान दिगम्बर अागमो का अनुमरण करती है। इसी चूणि के आधार पर रची गई दूसरी मस्कृत टीका प्राचार्य मलयगिरि की और तीमरी उपाध्याय यशोविजय की है। ये दोनो ही स्पष्टत श्वेताम्बर आचार्य है और सभी विवाद-ग्रस्त विपयो पर श्वेताम्बर आगमो का अनुसरण करते है । निष्कर्ष इस प्रकार उक्त विवेचन से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते है कि पट्खडागम, कम्मपयडी, मतक और सित्तरी इन चारो ग्रन्यो का एक ही उद्गमस्थान है और वह है द्वादशाग श्रुतज्ञान के वारहवे अग दृष्टिवाद के द्वितीय अग्रायणी पूर्व का पचम च्यवनवस्तु-गत चतुर्थ महाकम्मपयडिपाहुड। यहाँ एक बात और भी ध्यान देने योग्य यह है कि पट्खडागम, कम्मपयडी आदि उक्त चारो ग्रन्थो के निर्माण काल तक जैनपरम्परा मे दृष्टिवाद का पठन-पाठन प्रचलित था, भले ही वह उसके एक देश मात्र का ही क्यो न रह गया हो। दूमरी वात यह सिद्ध होती है कि उक्त चारो ग्रन्थो की रचना श्वेताम्बर सम्प्रदाय मे प्रसिद्ध प्राचारागादि आगमसूत्रो की सकलना के पूर्व हो चुकी थी, क्योकि उनकी मकलना के समय यह घोषित किया गया है कि अव दृष्टिवाद नष्ट या विच्छिन्न हो चुका है। अब केवल एक बात विचारणीय रह जाती है कि उक्त चारो ग्रथों के रचयिता प्राचार्य भी क्या एक ही प्राचार्य-परम्परा के है ? उज्जैन ]
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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