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________________ पं० नाथूराम जी प्रेमी श्री श्रादिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये पडित प्रेमीजी एक सच्चे अन्वेषणकर्त्ता श्रौर साहित्य सेवी है । जिन्हें उनके निकट सम्पर्क में थाने का अवसर मिला है, वे उनकी तृप्त न होने वाली ज्ञान-पिपासा तथा विद्या-वृद्धि के लिए हार्दिक सचाई में तत्काल प्रभावित हुए होगे । अपने विचारो के प्रति उनमे हठधर्मी नही है और न नये ज्ञान का स्वागत करते हुए वे कही थमे है । उनका मस्तिष्क सदैव ताज्रा और चुस्त है । समस्त नवीन बातो का वे इच्छापूर्वक स्वागत करते है और एक खिलाडी की भाँति अपनी स्थिति की जांच-पडताल करते रहते है । उनके वृद्ध शरीर में युवा मस्तिष्क एव स्नेही हृदय निवास करता है और इन्हें क्रूर पारिवारिक दुर्घटनाओ तथा लम्बी-लम्बी बीमारियो के बाद भी उन्होने सुरक्षित रखा है। वे सच्चे कार्यकर्त्ताओ को और वढिया काम करने के लिए सदैव प्रोत्साहन देते हैं। उनका दृष्टिकोण व्यापक है और उनकी वृत्ति विश्व के प्रति मैत्री भाव से परिपूर्ण है । उनका स्वभाव निश्चित रूप मानवीय है । उनकी कृपा और आतिथ्य का द्वार उनके प्रेमियो तथा आलोचको के लिए भी हमेशा खुला रहता है। दोपो को वे घृणा की दृष्टि से देखते हैं, लेकिन दोपी के प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करते है और उसके सुधार के निमित्त मन से प्रयत्न करते है । पुरातन और नवीन दोनो के प्रति वे सदैव विवेकपूर्णं सतुलन रखते है । नवीन अथवा पुरातन, दोनो में से किसी के प्रति भी उनमे कट्टरता नही है । वे नैतिकता एव उच्च मानवीय मूल्यों की कसौटी पर प्रत्येक चीज़ को कमकर देखते है। अपने शब्दो के प्रयोग मे वे बहुत नपे-तुले रहते हैं और जो कहते हैं, वही उनकी भावना भी होती है । से पति जो दुर्लभ गुणो के मूर्तिमान स्वरूप हैं और यही कारण है कि वे अनेको अन्वेपको और साहित्य सेवियो के सखा और मार्ग दर्शक है । कोल्हापुर ] देवरी ] जुग जुग जियहू [ प्रेमीजी के बाल-बन्धु की शुभ कामना ] , 'प्रेमी' प्रभु-पद-पद्म के, नेमी तत्त्व-विचार | जियहु- जियहु, जुग जुग जियहु, सह 'श्रावक' -आचार || - बुद्धिलाल 'श्रावक'
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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