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________________ २२६ प्रेमी - अभिनंदन ग्रंथ तो जहाँगीर के शासन काल में ही हो चुका था, पर शाहजहाँ के कमजोर शासन में उसे अपना सगठन करने का अवसर मिल गया । शाहजहाँ के जीवन के अन्तिम वर्षों में उसके योग्य पुत्र श्रोरगजेव ने इस दल का नेतृत्व अपने हाथो में लिया । औरगजेब कट्टर मुसलमान तो था ही, शासन के अनुभव और योग्यता मे भी अपने सव भाइयो से अधिक बढा-चढा था । गद्दी पर बैठने के बाद कुछ वर्षों तक औरगजेव ने हिन्दू स्वत्वो का विरोध न करते हुए इसलाम के सिद्धान्तो पर शासन का पुनर्निर्माण करने की चेष्टा की, पर विचारो का वेग श्रोर उसके जोर में घटनाओ का चक्र, इतनी तेजी से चल रहा था कि औरगजेव इस कठिन सिद्धान्त का अधिक दिनो तक पोलन न कर सका । ज्यो-ज्यो मराठो और सिखो का सगठित विशेष अधिक तीव्र होता गया, औरगजेब को विवश होकर हिन्दू-विरोधी नीति का पालन करना पडा । जजिया फिर से लगा दिया गया । हिन्दू-मन्दिर तोडे जाने लगे । परिस्थितियो ने मुस्लिमशासन को फिर एक बार उसी स्थान पर लाकर खड़ा कर दिया था, जहां से उसका प्रारम्भ हुआ था । उसने फिर एक कट्टर मुसलमानो की सस्था का रूप ले लिया था । इस सम्बन्ध में कई बातें ध्यान में रखना जरूरी है। मुस्लिम शासन को भारतीय जीवन धारा से अलहदा कर लेने का यह प्रयत्न बहुत थोडे मुसलमानो तक और केवल राजनैतिक क्षेत्र तक ही सीमित था । वह एक गलत श्रीर अस्वाभाविक प्रयत्न था, इसमें तो शक ही नही। इसी कारण हम यह देखते है कि १७०७ ई० मे श्रोरगजेव की मृत्यु होने के साथ ही इस प्रयत्न का भी अन्त हो गया। भारतीय जीवन की दो प्रमुख धाराएँ हिन्दू और मुसलमान, फिर एक दूसरे के साथ-साथ वह चली। औरगजेव के उत्तराधिकारियो के लिए हिन्दू जनता का समर्थन प्राप्त कर लेना जरूरी हो गया। शासन को फिर उदारता की नीति वरतनी पडी। पर इस बीच हिन्दू और मुसलमान समाजो की विभिन्नता बहुत स्पष्ट हो गई थी । हिन्दी और उर्दू के अलहदा हो जाने से इस प्रवृत्ति को और भी सहारा मिला। इसी बीच कुछ कारण ऐसे हुए जिन के परिणाम स्वरूप मुस्लिम समाज पतन की ओर बढ चला। बाहर के मुस्लिम जगत का सम्पर्क बिल्कुल समाप्त हो चुका था। ईरान के सफवी राजवंश के पतन के वाद ईरानी सभ्यता भी पतन की ओर बढ रही थी। इस कारण उस से प्रेरणा पाना भी सम्भव नही रह गया था । निम्न श्रेणियो के हिन्दुओ का अधिक सख्या में मुसलमान हो जाने का भी अच्छा असर नही पड रहा था। मुसलमानो में गरीबी और शिक्षा का प्रभाव दोनो वढ रहे थे। राजनैतिक सत्ता हाथो से जा रही थी। सभव है कि मुग़ल साम्राज्य यदि अपने प्राचीन वल और वैभव को प्राप्त कर पाता तो दोनो सस्कृतियों के समन्वय की धारा एक बार फिर अपने प्रवल वेग से वह निकलती, पर राजनैतिक परिस्थितियाँ प्रतिकूल थी। जो तार एक वार टूटा वह फिर जुड़ न सका। पर यह सोचना कि धक्का बहुत गहरा अथवा साघातिक लगा, इतिहास की सचाई को ठुकराना है। समाज के अन्तराल में शताब्दियों में जिस समन्वय की जड जम चुकी थी, वह आसानी से उखाड़ कर फेंकी नही जा सकती थी। डा० वेनी प्रसाद के शब्दों में, "निकट भूतकाल के अनुभव भुलाए नही जा सके, हिन्दू-मुस्लिम-संस्कृति का जो ढाँचा पाँच शताब्दियो के ज्ञात अथवा अज्ञात सहयोग प्रयत्नो द्वारा बनाया गया था वह न सिर्फ क़ायम ही रहा, और मजबूत बना। वह कडी से कडी परीक्षा में खरा उतर चुका था और देश की पूंजी का वन चुका था।"* अग्रेजी शासन का प्रभाव पतन और अनिश्चय की उस सक्रमण घडी में अग्रेज़ इस देश में आए। वे अपने साथ एक नई सभ्यता लाए थे, हिन्दू-समाज जो पतनोन्मुख तो था, पर मुस्लिम समाज जितना गिरा हुआ नही था, पश्चिम के नए विचारो के सम्पर्क से पुनर्जीवित हो उठा। इस काल के बगाल के हिन्दू युवको में हम पश्चिम के कला और विज्ञान, सभ्यता और सस्कृति से अधिक-से-अधिक सीख लेने की प्रवृत्ति को अपने पूरे वेग पर पाते हैं। ईसाई मिशनरियो द्वारा खोले गए स्कूल और छात्रा * Beni Prasad • Hindu Muslim Questions
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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