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________________ दादू और रहीम २०१ • बराबरी का न होने से प्रेम की लीला नही चल सकती । प्रेम के लिए भगवान् ने भक्त को अपने समान बना लिया है, यह मानो विन्दु का सिन्धु के समान हो जाना है । रहीम ने आश्चर्य के साथ कहा है कि इस अद्भुत प्रेम-लीला में हेरनहार अपने में ही हेरा जाता है (खो जाता है)। बिन्दु भो सिन्धु समान, को अचरज कासों कहै। हेरनहार हेरान, रहिमन अपने आप तें॥ दादू ने कहा है, "भीतर ही रोप्रो। मनहि माहि झूरना, (विरह अग, १८) और वहाँ वाक्य की अपेक्षा ही कहाँ है । वहां मौन रहने में हानि ही क्या है ? भला जिसने हृदय मे ही घर बना लिया है, उससे कहने को वच ही क्या रहा?" जिहि रहीम तन मन लियो, कियौ हिये विच भौन । तासो सुख दुख कहन को रही बात अव कौन ॥ यह प्रेम के भाव में भगवान् और भक्त का जो अभेद है, उसका परिचय नाना भाव से कबीर, दादू आदि महापुरुषो की वाणी में पाया जाता है । यहाँ उनका विस्तार करना निष्प्रयोजन है। दादू के साथ रहीम की बातचीत एक ही वार हुई थी, या कई बार दोनो का मिलना हुआ था, यह कहना कठिन है। लेकिन इन सव साधको के मत का प्रभाव उनकी कविता पर पड़ा है, यह वात स्पष्ट है। लेकिन यह भी सच है कि दुख का आघात पाये विना मनुष्य भगवान् की ओर नही झुकता। इसीलिए रहीम ने बडे दुख के साथ कहा है कि विषय-वासना में लिपटा हुआ मनुष्य राम को हृदय में नहीं धारण कर सकता। पशु तिनका तो वडे प्रेम से खाता है, लेकिन गुड उसे गुलिया कर खिलाया जाता है। रहिमन राम न उर धरै, रहत विषय लपटाय । • पशु खड खात मवाद सो, गुड गुलियाये खाय ॥ अकवर जवतक जीवित थे, रहीम सुखपूर्वक थे । नाना प्रकार के दान और प्रौदार्य से उनकी ख्याति देश भर में व्याप्त हो गई थी। वाद मे जब रहीम पर दुख और दुर्दिन पाया तो दादू परलोक सिधार चुके थे। इसीलिए उन दिनो रहीम को दादू जैसे महापुरुष के पास जाकर सान्त्वना पाने का अवसर नहीं मिला। उस अवस्था में रहीम, दादू के पुत्र गरीवदास के पास गये थे और उनसे अपने मन की व्यथा कहीं थी। गरीबदास बडे ही भगवप्रेमी थे। कहते है कि इनके ससर्ग में आने पर ही रहीम का चित्त भगवद्भक्ति से भर उठा था और उन्होने गद्गद होकर कहा था समय दसा कुल देखि के, सर्व करत सन्मान । रहिमन दीन अनाथ को, तुम बिन को भगवान ॥ गरीवदास के सम्पर्क में आने के बाद ही रहीम ने अनुभव किया था कि दुख दुर्दशा होने से यदि प्रियतम का मिलना सुलभ होता है तो दुख दुर्दशा ही अच्छी है। प्रिय से मिलाने वाली रात अकेले-अकेले कटने वाले दिन की अपेक्षा कही अच्छी है। रहिमन रजनी ही भली, पिय सों होय मिलाप । खरो दिवस किहि काम को, रहिबो प्रापुहि श्राप ॥ इसी बात को एक और ढग से रहीम ने कहा है काह करौं बैकुठ ले, कल्प बृच्छ की छाँह । रहिमन ढाक सुहावनो, जो गल पीतम वह ॥ शान्तिनिकेतन] २६
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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