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________________ २०० प्रेमी-अभिनंदन-प्रथ ठीक दादू की तरह ही रहीम ने भी कहा है, "प्रियतम की छवि, प्रियतम की शोभा आंखो मे भरपूर होकर वसी है। दूसरे की छवि के प्रवेश करने की जगह कहाँ है । हे रहीम, भरी हुई पान्यशाला को देखकर दूसरे पथिक स्वय ही लौट जाते है।" प्रीतम छवि नैनन बसी, पर छवि कहाँ बसाय । भरी सराय रहीम लखि, पथिक प्राप फिरि जाय॥ ऐसी अवस्था मे कृत्रिम वेश और साज-सज्जा कुछ भी अच्छा नहीं लगता। जो जीवन भगवान से परिपूर्ण है, वह क्या कोई कृत्रिम साज-सज्जा सह सकता है ? दादू ने कहा है विरहिन को सिंगार न भावे विसरे अजन मजन चीरा, विरह व्यथा बहु व्यापै पीरा। (राग, गोडी २०) और आगे चलकर दादू ने कहा है_ जिनके हृदय हरि बस मै चलिहारी जाऊँ। (साय अग, ६३) रहीम ने इसीसे मिलता-जुलता दोहा कहा है, "जिन आँखो में अजन दिया है उनमें किरकिग सुरमा नही दिया जा सकता। जिन आंखो मे श्री भगवान् का रूप देखा है, वलिहारी है उन आँखो की ।" अजन दिया तो किरकिरी, सुरमा दियो न जाय । जिन आँखिन से हरि लख्यो, रहिमन बलि बलि जाय ॥ दादू ने कहा है, "ऐसी आँख सारे ससार में भगवान् की नित्य रास-लीला को देखती है। ऐसी आंख देखती है कि घट-घट मे वही लीला चल रही है। प्रत्येक घट महातीर्थ है। घट-घट मे गोपी है। घट-घट में कृष्ण । घट-घट में राम की अमरपुरी है। प्रत्येक अन्तर मे गगा-यमुना वह रही है और प्रत्येक में सरस्वती का पवित्र जल स्पन्दित है । वहां प्रत्येक घट में कुजकेलि की नित्यलीला चल रही है, सखियो का नित्यराम खेला जा रहा है । विना वेणु के ही वहाँ वमी वज रही है और सहज ही सूर्य, चन्द्र और कमल विकसित हो रहे है । घट-घट मे पूर्ण ब्रह्म का पूर्ण प्रकाश विकीर्ण हो रहा है और दास दादू अपनी शोभा देख रहा है। घटि घटि गोपी घरि घटि कान्ह । घटि घटि राम अमर प्रस्थान ।। गगा यमुना अन्तरवेद । सरसुति नीर वह परनेद ॥ कुज केलि तह परम विलास । सव सगी मिलि खेल रास । तह विनु वेन वाजे तूर । विगस कमल चन्द अरु सूर ।। पूरण ब्रह्म परम परकास । तह निज देखै दादू दास ॥ अवतार का तत्त्व समझाते हुए रहीम कहते है, "हे रहीम, यदि प्रेम का स्मरणं निरन्तर एकतान भाव से होता रहे तो वही सर्वश्रेष्ठ है । खोये हुए प्रियतम को चित्त में फिर से पा लेना ही तो अवतार है।" रहिमन सुघि सव ते भली, लाग जो इकतार । बिछरै प्रीतम चित मिल, यह जान अवतार ॥
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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