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________________ उत्तर भारत के नाथ सम्प्रदाय की परम्परा में बंगाली प्रभाव श्री सुकमार सेन एम० ए०, पी-एच० डी० (फलकत्ता) यह वात बहुत समय से विचारग्रस्त रही है कि सभवत बगाल मे ही नाथ--योग सम्प्रदाय की उत्पत्ति हुई है। गोईचद या गोपीचद तथा उनकी माता मैनावती की पौराणिक कथा, जो कि इस मप्रदाय से सवधित कथाओ में सबसे अधिक मनोरजक है, वगाल से उठकर उत्तर नथा पश्चिम के कोनो तक फैल गई है। इस कथा का प्रसार आधुनिक नहीं है, क्योकि मलिक मुहम्मद जायसी के ग्रथ पद्मावती में भी हमे इसका एक मे अधिक बार उल्लेख मिलता है, परन्तु कथा का बगालीपन विलकुल गायव नहीं हो सका है। बहुत पुराने काल से योगी या नाथ-सप्रदाय का गहरा सवध वगाल प्रान्त के विशेष लौकिक संप्रदाय से, जो कि धर्म-मप्रदाय कहलाता है, रहा है। यह एक अग्य प्रमाण है, जिसमे पुष्ट होना है कि नाथ-सप्रदाय की उत्पत्ति वगाल में ही हुई। , इस नाथ-सप्रदाय की दूसरी महत्त्वपूर्ण कथा, जिसमें इस बात का वर्णन है कि किस प्रकार योगी मत्स्येन्द्रनाथ कदली नामक देश की स्त्रियों के मोह में फस गए, तथा अत में किस प्रकार उनका उद्धार उनके शिष्य गोरक्षनाथ ने किया, बगाल के वाहर इतनी अधिक प्रसिद्ध नहीं है, परन्तु कथा का सार अर्यात् किस प्रकार शिष्य से गुरु को ज्ञान की प्राप्ति हुई, उत्तर तथा पश्चिम भारत के योगियो के पारम्परिक उपदेशो में तथा उनके प्रश्नोत्तर सवयी गयो मे वारवार मिलता है। इन सबका सग्रह डा० पीताम्वरदत्त बड़थ्वाल ने गोरख-बानी नामक एक अच्छे ग्रथ के रूप में सम्पादित किया है जो हिन्दी माहित्य-सम्मेलन, प्रयाग से प्रकाशित हुआ है। इस सुन्दर सग्रह मे न केवल वानियो के रूप तथा उनके मुहावरो पर, अपितु पूरे-पूरे वाक्यागो तथा अन्य तुलनात्मक वातो पर निस्सदेह वगाली प्रगाव प्रकट होता है। गोरख-वानी के दोहो तथा पदो मे यदि सभी नहीं तो अधिकाश पहले-पहल बगला में लिखे गये थे, इसकी पुष्टि मे कितने ही शब्दो के भूतकालिक आदि रूप दिए जा सकते है, जिससे वगला भाषा का प्रभाव स्पष्ट होगा (क) भूतकालिक रूप-इल-(उदा०-पाइला, रहिला, जाइला, कहिला, विमाइला, करिला, मरिली, तजिली, तजिला, राखिले, मुडाइले आदि) । (ख) भविष्यत्-रूप-इब-(उदा०--खेलिवा, गाइवा, देखिवा, पाइबा, मुडाइवा आदि)। (ग) कुछ मुहावरे---दिढ फरि (मजबूती से, पृष्ठ ३), दया करि (पृष्ठ १८६), मस्तक मुडाइले (सिर मुडालिया, पृष्ठ ४५)। (घ) कुछ वाक्याश-कोट्या मधे गुरुदेवा गोटा एक बुझे (हे गुरुदेव, करोड में से कोई एक समझे, पृष्ठ १५१) आदि। नीचे की समानताएँ भी ध्यान देने योग्य है। (१) फुची ताली (नाला) सुषमन करे (पृष्ठ ४६), मिलाओ पुरानी बगला-सासु घरे, घालि, कोचा ताल (सास के घर को ताला और कुजी देना, चर्यापद ४)। 'जो भल होत राज श्री भोगू । गोपिचन्द नहिं साधत जोगू ॥ जोगीखड ५, गोपिचन्द तुइ जीता जोगू-सिहलद्वीपखड १; मानत भोग गोपिचन्द भोगी। लेइ अपसवा जलन्धर जोगी। नागमतीवियोगखड, १, इत्यादि ।
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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