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________________ प्रेमी-अभिनदन-प्रथ वर्ण जाति विवरण न० नाम १४ गण्ठि (मण्ठ) वर्ण शोण इत्यादि वैश्य शेप (शोण)स्तेप्वेव देशेषु सर्वाङ्गे किञ्चिदुज्वल । रक्तरेखाङ्कित पृष्ठे गण्ठि (मण्ठ)वर्णस्तुरङ्गम ॥१४॥ १५ पञ्चकल्याण पाण्डुर येनकेनापि वर्णेन मुखे पुच्छे च (पादेषु)पाण्डुर ।। पञ्चकल्याण नामाय भापित सोमभूभुजा ॥६॥ १६ अष्टमठा (ङ्ग)ल पाण्डुर केशेषु वदने पुच्छे वशे पादे च पाण्डुर । अण्ट मण्ठा (ङ्ग)ल नामा च सर्ववर्णेपु शस्यते ॥६॥ १७ धौतपाद श्वेत इत्यादि श्वेत सर्वेषु पादेपु पादयोपि यो भवेत् । धौतपाद स विज्ञेय प्रशस्तो मुगपुण्डक ॥१७॥ १८ हलाह (ह-२०) श्वेत इत्यादि विगाले पट्टकै श्वेत स्थाने स्थाने विराजित । येन केनापि वर्णेन हलाह इति कथ्यते ॥९८|| १६ तरज चित्रित चित्रित पार्वदेशे च श्वेतविन्दुकदम्बके । यो वा को वा भवेद्वर्णस्तरज कथ्यते ह्य ॥१६॥ २० पिङ्गल सित+कृष्ण इत्यादि , सितस्य विन्दव कृष्णा स्यूला सूक्ष्मा समन्तत । दृश्यन्ते वाजिनो यस्य पिङ्गल स निगद्यते ॥१०॥ २१ बहुलया मलिन श्वेत+श्यामल , श्वेतस्य सर्वगात्रेषु श्यामला मण्डला यदि । ___ एके त वहुल प्राहुरपरे मलिन बुधा ॥१०१॥ सोमेश्वर की उक्त सूची की हेमचन्द्र की सूची से तुलना करने पर हमें पता चलता है कि निम्नलिसित नाम दोनों सूचियो में है (१) कर्क (२) सेराह (३) नील या नीलक (४) उराह (५) हलाह और सभवत (६) पिङ्गल या पङ्गल। ___ यह केवल सयोग की वात नही है । यद्यपि सोमेश्वर दक्षिण में राज्य करते थे और हेमचन्द्र गुजरात में रहते थे तथापि इन दोनो प्रान्तो में निरन्तर पारस्परिक सम्पर्क रहता था। हेमचन्द्र के आश्रयदाता महाराज कुमारपाल ने दो वार कोकन पर आक्रमण किया और शिलाहार वश का राजा मल्लिकार्जुन इन आक्रमणो मे से एक में मारा गया। यह बहुत सम्भव है कि दक्षिण की कुछ अश्वविद्या गुजरात पहुँची होगी और गुजरात की दक्षिण मे, क्योकि निरन्तर युद्ध में रत राजापो के लिए अश्वविद्या का वडा मूल्य था। सोमेश्वर और हेमचन्द्र ने जिन नामो का ग्यारहवी शताब्दी में उल्लेख किया है, उनमे से कुछ विजयदत्त के पुत्र महासामन्त जयदत्त के द्वारा घोडो के विषय मे लिखे 'अश्ववैद्यक नामक निवन्ध मे भी पाये जाते है। निवन्ध के अन्त मे कुछ मादक द्रव्यो के नाम भी आते है और सम्पादक का कथन है कि उनका जयदत्त ने उल्लेख किया है । उन नामो में मुझे पृष्ठ ३ पर 'अहिफैन' या 'अफीम' का नाम मिलता है। यदि यह कथन सही है तो मुझे कहना पडता है कि यह निबन्ध मुसलमानो के भारत में आगमन के पश्चात् लिखा गया है, क्योकि आठवी शताब्दी में मुसलमानो 'एस० चित्राव शास्त्री (पूना) रचित 'मध्ययुगीनचरित्रकोश' १९३७, पृ० २४० । प्राकृत व्याश्रयकाव्य (सर्ग ६) के ४१ से ७० तक छद देखिये, जिनमें कुमारपाल के कोंकण पर कूच का वर्णन है। सम्पादक उमेशचन्द्र गुप्त, विब० इडिका, कलकत्ता, १८८६ । तीसरे अध्याय के ९८-११० छन्दो में वर्गों के अनुसार घोडों की किस्मों का वर्णन है। (पृष्ठ ३८-४३)।
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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