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________________ अश्वो के कुछ विशिष्ट नाम विभिन्न प्रकार के घोडो की विशेषतानो पर भी, जिनमै घोडो के शरीर की गठन भी सम्मिलित है, प्रकाश डाला है। यहां उन्होने 'पचकल्याण' तथा 'अष्टमङ्गल' घोडो का उल्लेख किया है । तदनन्तर घोडो की गति-अधिक, मध्यम और धीमी-का विभाजन किया है । दोषपूर्ण घोडो के चिह्न भी उन्होने दिये है । घोडो को सजा देने तथा शिक्षण योग्य बनाने के तरीको को भी बताया है। शिक्षण पूर्ण हो जाने पर ये घोडे राजा के काम आते थे। सर्वोत्तम अश्वो को सर्वोत्तम जोन तथा आभूषणो से सुसज्जित किया जाता था और राजा उन पर सवारी करते थे। वर्गों के आधार पर घोडो के नाम देने के पूर्व सोमेश्वर लिखते है "श्वेतः कृष्णोऽरुणः पीत. शुद्धाश्चत्वार एव हि । मिश्रास्त्वनेकघा वर्णास्तेषां भेद प्रवक्ष्यते ॥५२॥" (अर्यात् सफेद, काले, लाल और पीले, ये ही चार विशुद्ध वर्ण है। उनके मिश्रण तो अनेक है। उनके भेदो को आगे बताया जायगा)। विभिन्न वर्गों तथा जातियो के घोडो के सोमेश्वर द्वारा उल्लिखित नामो का नीचे दी हुई तालिका पर एक निगाह मे ही आभास हो जायगान० नाम वर्ण जाति विवरण १ कक (क) श्वेत विप्र केशा वालाश्च रोमाणि वर्म चैव खुरास्तथा। श्वतरेतैर्भवेदश्व कका (ऊ) हो विप्रजातिज ॥३॥ २ कत्तल शुक्ल या श्वेत पूर्ववत्सर्वशुक्लाङ्गस्त्वचा कृष्णो भवेद्यदि । वर्णनाम्ना स विज्ञेय कत्तलोऽय तुरङ्गम ॥४॥ ३ काल कृष्ण शूद्र लोमभि केशवालश्च त्वचा कृष्णः खुरैरपि। काल इत्युच्यते वाजी शूद्रः शौर्याधिकस्तथा।।८।। ४ कपाह (कवाह) रोहित क्षत्रजाति केशप्रभृति वालान्त सर्वाङ्गे रोहितो यदि। (ह-७) कयाह इति विख्यात क्षत्रजाति तुरङ्गम ॥८६॥ सेराह काञ्चनाभ वैश्य केशस्तनुरुहर्वाल काञ्चनाभस्तुरङ्गम । सेराह इति विख्यात वैश्यजाति समुद्भव ॥७॥ ६ चोर सिल+लोहित सिललोहित रोमाणि सर्वाङ्गे मिश्रितानि च । मुखाङ्घ्रि वालकेशेषु लोहितश्चोर उच्यते ॥१८॥ । ७ नील सितकृष्ण केशवालाङ्घ्रितुण्डे च मेचको रुरुसन्निभ । नील इत्युच्यते वाजी सितकृष्णे तनूरुहे ॥८६॥ ८ क या(पा)ह कृष्ण इत्यादि पाटलीपुष्पसका (शो)शानलकेषु सितेतर । कृष्णन्थिकया(पा)होश्व सङ्ग्रामे विजयप्रद ॥६०॥ है मोह मधूक वल्कल मधूकवल्कलच्छायो मोह इत्युच्यते हय । १० जम्ब पक्वजम्बूफल पक्वजम्बूफलच्छायो जम्ब इत्यभिधीयते ॥६॥ ११ हरित (ह-५) पीत+लोहित केशवालेषु पीतश्च लोहितो हरितो मत । (ह-१७) १२ सप्त (प्ति) रुन्दीर उन्दुरवर्ण उन्दुरेण समच्छाय सप्त (प्ति) रुन्दीर उच्यते ॥१२॥ १३ उराह मेचक+पीत+ केशकेसर पुच्छे च जानुनोऽधश्च मेचकः । (ह-११). लोहित सर्वाङ्गलोहित पीतैरुराह. कथ्यते हय ॥६॥
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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