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________________ ManoranGornospo0OODSOp00700-opanpancropo200000000000000000pcs TOURCROMORRORamSONanweroenpanwanpEE ब्रह्मविलासमें है उड्डा कहै डंक विप जैसो । डसै भुजंग मोहविप तैसो ॥ डारयो विष गुरु मंत्र सुनायो ।डर सवत्याग मान समुझायो१४६ ए ढड्ढा कहै ढील नहिं कीज़े । ढूंढ ढूंढ़ चेतन गुण लीजे ॥ दिग तेरे है ज्ञान अनंता । ढकै मिथ्यात्वताहिकरि अंता१५० दोहा. नन्ना अक्षर जे लखो, तेई अक्षर नैन ॥ __जे अक्षर देखै नहीं, तेई नैन अनैन ॥ १६ ॥ .. चौपाई १५ मात्रा. तत्ता कहै. तत्त्व निज काज। ताको गहे होय शिवराज ॥ ताको अनुभौ . कीजे हंस । तावेदतद्वै तिमिर विध्वंस॥१७॥ ए थत्था कहै इन्द्रिनको भूप । थंभन मन कीने चिद्रूप ॥ थाकहिं सकल कर्मके संग । थिरतासुख तहहोय अभंग॥१८॥ दद्दा कहै परगुणको दान । दीने थिरता लहो निधान । दया वहै सुदया जहँ होय । दया शिरोमणि कहिये सोय१९॥ धद्धा कहै धरमको ध्यान । धरि चेतन ! चेतनगुण ज्ञान ॥ धवल परमपद प्रापति होय । ध्रुवज्यों अटलटलै नहि सोय२०॥ नन्ना नव तत्त्वनसों भिन्न । नितप्रति रहै ज्ञानके चिन्न । निशदिन ताके गुण अवधारि । निर्मल होय करमअघटासि॥२१॥ पप्पा कहै परमपद इष्ट । परख गहो चेतन निज दिष्ट । हु प्रतिभासहि सव लोकालोक । पूरण होय सकलसुख थोका२२॥ है फफ्फा कहै फिरहु कित.हंस । फिर फिर मिलैन नरभव वंस॥ फंद सकलं अरिके चकचूरि। फोरि शकति निज आनंद पूरि२३ है बव्वा कहै ब्रह्म सुनि बीर । वर विचित्र तुम परम गंभीर ॥ PownORPORRORDERamPPERORRUPender YSERIAsabsplanapeupantivanasanvaideosrebaapkinentaranorabitsranaormss/GDSDvsnabaVIRGERY
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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