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________________ Note: Asawang dan ete anato Go/down/ do 300 अक्षरवत्तीसिका. ८७ वोध वीज लहिये अभिराम । विधिसों कीजे आतमकाम ||२४|| भव्भा कहें. भरमके संग । भूलि रहे चेतन सर्वेग ॥ भाव अज्ञाननको कर दूर । भेदज्ञानतें परदल चूर ॥ २५ ॥ मम्मा कहें मोहकी चाल । मेटि सकल : यह परजंजाल ॥ मानहु सदा जिनेश्वरंवन । मीठे मनहु सुधात ऐन ॥ २६ ॥ जज्जा कहे जैनवृप गहो । ज्यां चेतन पंचमि गति लहो ॥ जानहु सकल आप परभेद । जिहँजानें हैं कर्म निखेद ॥ २७ ॥ रर्रा कह राम सुनि वैन । रमि अपने गुन तज परसैन ॥ रिद्ध सिद्ध प्रगटहि ततकाल । रतन तीन लख होहु निहाल ||२८|| लल्ला कहे लखहु निजरूप । लोकअग्र सम ब्रह्मस्वरूप ॥ लीन होहु वह पद अवधारि । लोभकरन परतीत निवारि ॥ २९ ॥ सोरटा. वव्वा वोले चैन, सुनो सुनोरे निपुण नर ॥ कहा करत भव सैन, ऐसो नरभव पाय के ॥ ३० ॥ दोहा. शक्षा शिक्षा देत हैं, सुन हो चेतन राम ॥ सकल परिग्रह त्यागिये, सारो आतम काम ॥ ३१ ॥ खक्खा खोटी देह यह, खिणक माहि खिर जाय ॥ खरी सुआतम संपदा, खिरं न थिर दरसाय ॥ ३२ ॥ . सस्सा सजि अपने दहि, शिवपथ करहु विहार ॥ होय सकल सुख सास्वते, सत्यमेव निरधार ॥ ३३ ॥ हा क हित सीख यह, हंस वन्यों है दावे ॥ हरिलै छिनमें कर्मको, होय बैठि शिवराव ॥ ३४ ॥ upande do dedo do do Jão Jo 50, 50, 5. కe day కారు aavali
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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