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________________ Manabran Rom /DP0/000/Raopanspoo0000000000VmDCnPanorans ROOPARDAMOM/EMORIAOSenawan/Ranuarpan . ब्रह्मविलासमें ....... ज्ञान दरश चारित भंडार । तू शिवनायक तू शिवसार ॥ तू सब कर्मजीत शिव होय । तेरी महिमा वरने कोय।।२९१॥ है। दोहा. . गुण अनंत या हंसके, किंहविधि कहैं बखान ॥ थोरेमें कछु वरनये, 'भविक' लेहु पहिचान ।।२९२॥ यह जिनवानी उदधिसम, कविमति अंजुलि मात्र ॥ तेती ही कछु संग्रही, जेतो हो निज पात्र ॥ २९३ ॥ जिनवानी जिहँ जिय लखी, आनी निजघटमाहि ॥ तिहँ प्रानी शिवसुख लह्यो, यामें धोखो नाहिं ॥ २९४ ॥ चेतन अरु यह कर्मको, कह्यो चरित्र प्रकाश ।। सुनत परम सुख पाइये, कहै भगवतीदास ॥ २९५॥ सत्रहसौ छत्तीसकी, जेष्ठ सप्तमी आदि ॥ श्रीगुरुवार सुहावनो, रचना कही अनादि ॥ २९६ ॥ इति चेतनकर्मचरित्र समाप्तः। अथ अक्षरवत्तीसिका लिख्यते ॥ दोहा.. गुण अपार ओंकारके, पार न पावै कोय ॥ । सो सब अक्षर आदि ध्रुव, नमैं ताहि सिधि होय ॥१॥ चौपाई. कका कहै करन वश कीजे । कनक कामिनी दृष्टि न दीजे ॥ करिके ध्यान निरंजेन गहिये । केवलपदइहविधिसोंलहिये॥२॥ १ (१) इन्द्रियोंको। (२) कर्मरहित आत्मस्वरूपको । sappeopoPARAMPARANOPARDARPeace /Tehreeopehtatayaprabhavebs
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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