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________________ KawanaKATAPWDOTOARDonwanemenDRIOR चेतनकर्मचरित्र. श्री सयोगपुर देशमें, चेतन करि परवेश ॥ लाग्यो हरण सुकर्मको, तजिके.जोगकलेश ।। २८० ॥ तय सुवेदनी कर्मने, दीनों रस निज आय ।। दुहुमें एक भई प्रगट, जानहिं श्रीजिनराय ।। २८१ ॥ हम पयानो जगतत, कीनो लघुथितिमांहि ॥ हरिक चारहिं कर्मको, सूधे शिवपुर जाहिं ॥ २८२ ॥ तह अनंत सुख शास्वते, विलसहिं चेतनराय ।। निराकार निर्मल भयो, त्रिभुवन मुकुट कहाय ॥२८॥ चापई. UARRANGDAMVaidaanvanticebrARAuntainvenientivitriNDENisoninviDURsts अविचल धाम बसे शिव भूप । अष्टगुणातम सिद्ध स्वरूप ॥ चरमदह परमित परदेश । किंचित ऊनो थित विनभेश ।। पुरुपाकार निरंजन नाम । काल अनंतहि ध्रुव विश्राम ॥ हैभव कदाच न कवड होय । सुख अनंत विलस नित सोय॥ हैलोकालोक प्रगट सब वेद । पट द्रव्य गुण पर्याय सुभेद ॥ अज्ञेयाकार सकल प्रतिभास । सहजहिं स्वच्छ ज्ञानजिहँ पास ॥ पटगुणी हानि वृद्धि परनमें । चेतन शुद्ध स्वभावहि रमै । उत्पत व्यय ध्रुव लक्षण जास। इहविधि थिते सवै शिवरास८७॥ जगत जीत जिहि विरुद प्रमान । पायो शिवगढ रतननिधान । गुण अनंत कहिये कत नाम । इहविध तिष्ठहि आतमराम८८॥ जिनप्रतिमा जगमें जहँ होय । सिद्ध निसानी देखहु सोय सिद्ध समान निहारहु आप । जातें मिटहि सकल संताप८९॥ - निश्चय दृष्टि देख घटमांहि । सिद्ध रुतोमहिं अन्तर नाहि।। ये सब कर्म हाय जड़ अंग । तू 'भैया' चेतन सर्वग ॥१०॥ wan/RamparamparpanSpERRORPORPIOR Geweet watercouco mocowavedeute agresoteerboerde cuarentesco
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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