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________________ PROPOpanRampcnap030000RROpendepena ब्रह्मविलासमें andurangarendranapavaraprasanamaananaananaanaechaenaeopramanarayana. प्रगट्यो तहँ वीर्य अनंत जोरि ।.प्रगट्यो सुख शक्ति अनंत फोरि॥ ९ तह दोष अठारह गये भाज । प्रभु लागे करन त्रिलोकराज६९ है सब इन्द्र आय सेवहिं त्रिकाल । प्रभु जयजय जय जीवनदयाल तह करत अष्टप्रतिहार्य देव । विधि भावसहित नितभविक सेव ॥ प्रभु देत महा उपदेश. ऐन । जिहँ सुनत लहत भविपरम चैन। जहँ जनम जरा दुख नाश होय । प्रभु विद्यादेश वताय सोय॥७१ है इहविधि सयोगपुर राज योग । प्रभु करत अनंत विलास भोग तोउ करम चार नहिं तजहिं संग। लगरहे पूर्व तिथिवंध अंग ॥७२ प्रभु शुक्लध्यानआरूढ होय । अंतरीक्ष विराजहिं गगन सोय॥ १ तहँ आसन दृढ ठहराय एक । पद्मासन कायोत्सर्ग टेक ||७३॥ है प्रभु डग नहिं भरहिं कदाच भूम। तऊ कर्म करत है कौन धूम ॥ लिये लिये फिरत तिहुँलोकमांहि जिहँ थानक पूरव बंध आहि ॥ कहुँ राखहिं थिर कहुँ लै चलंत । कहुँ वानि खिरै कहुँ मौनवंत । कहुँ समवशरण कहुँ कुटी होय । कहूँ चौदहराजु प्रमान लोय।।७५६ है इहविधि ये कर्म करत जोर। नहिं जान देत शिववधू ओर ॥ ए एतेपै निर्बल कहे बखान । मनु जरी जेवरीकी समान।।७६ है तोउ समय समयमें आय आय । चेतन परदेशन थित वधाय ॥ यह एक समयमें करत त्याग । थिर होन देतनहिं दुतिय ला तऊ सुभट पचासी लगि रहंत । निजनिजथानक निजवल करत चेतन परदेश न घात होय । तातै जगपूज्य जिनेश होय ॥७॥ दोहा. चेतन राय सयोगपुर, इहविध विलंसहि राज ॥ अब चहुँ कर्मन हरनको, ठगनहि एक इलाज ॥२७९॥ (१) तेरहवें गुणस्थानमें. Tenomomen/GOOPPEPAROPARDARPIRampan repranoramaprabad/enupropramodn080Gooo/vaanadaadevacenamenacopranospaprems
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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