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________________ FEDERemenwanSARONSOPOROOPEROREGORY द्रव्यसग्रह. . ३९ए , अजीवो पुण णेओ, पुग्गल धम्मो अधम्म आयासं ॥ है कालो पुग्गल मुत्तो, स्वादिगुणो अमुत्ति सेसादु ॥१५॥ है. अजीबदरव पंच ताके नांव भिन्न सुनो, पुद्गल ओ धर्मद्रर व्यको सुभाव जानिये । अधर्म द्रव्य आकाश द्रव्य काल दर्व , एई, पांचो द्रव्य जगमें अचेतन वखानिये ॥ तामे पुग्गल है मू-है इ.रतीक रूप रस गंध, पर्शमई गुणपरजाय लिये जानिये। और पं. च जीव जुत कहे हैं अमूरतीक, निज निज भाव धरै भेदी । है. पिछानिये ॥ १५ ॥ है सद्दोवंधो सुहमो, थूलो संठाण भेद तमछाया ॥ . उजोदादवसहिया, पुग्गलव्वस्स पजाया ॥१६॥ शवद वंध सूक्षम थूल ओ अकार रूप, 8वो मिलिवो ओ विछुरिवो धूप छाय है । अंधारो उजारो ओ उद्योत चंदकांतिहै सम, आतप सु भानु जिम नानाभेद छाय है । पुद्गल अनन्त । ताकी परजाय हू अनंत, लेखो जो लगाइये तोऽनंतानंत थाय है है । एकही समॆमें आय सव प्रतिभास रही, देखी ज्ञानवंत ऐसी । पुद्गल प्रजाय है ।। १६॥ र गइपरणयाण धम्मो, पुग्गलजीवाण गमणसहयारी ॥ है तोयं जह मच्छाणं, अच्छंता णेव सो णेई ॥ १७॥ है जब जीव पुद्गल चलै उठि लोकमध्य, तवै धर्मास्तिकाय सर हाय आय होत है । जैसें मच्छ पानीमाहिं आपुहीतें गौन करे, है नीरकी सहायसेती अलसता खोत है । पुनि यों नही जो पानी मीनको चलावे पंथ, आपुहीते चले तो सहाय कोऊ नोत है। से तैसें जीव पुद्गलको और न चलाय सके, सहजै ही चले तो स हायका उदोत है ॥ १७॥ । CreoaanwepRMARWAMDARPAPERORPOPPORT N orter rapradabad/empop/900/maprab-Germanapras000GOAGRAGOVEpapro 0000000000renormouTR
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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