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________________ M OHAMA transierated) were Panappropea nsengpanweruperaDARIANDER . १३८ ब्रह्मविलासमें. कहे जिनराजने। येही भाव जोलों तोलों संसारी कहाँव जीव ६ इनको उलंपिकरि मिलै शिव साजने ॥ शुद्धनै विलोकियेतो शुद्ध है है है सकलजीव, द्रव्यकी उपेक्षासो अनंत छवि छाजने । सिद्धके समान ये विराजमान सवै हंस, चेतना सुभाव धरै कर निज का जनै ॥ १३॥ णिकम्मा अठगुणा, किंचूणा चरमदेहदो सिद्धा। हूँ लोयग्गठिदा णिच्चा, उप्पाद्वयेहिं संजुत्ता ॥ १४ ॥ अष्टकर्महीन अष्ट गुणयुत चरमसु, देह तातें कछु ऊनो सुमें खको निवास है । लोकको जु अग्र तहाँ स्थित है अनंत सिद्ध उत्पादव्यय संयुक्त सदा जाको वास है ॥ अनंतकाल है पर्यन्त थिति है अडोल जाकी, लोकालोकप्रतिभासी ज्ञानको प्र काश है। निश्चै सुखराज करै बहुरि न जन्म धरै, ऐसो सिद्ध है राशनिको आतम विलास है ॥ १४ ___ पयडिडिदिअणुभागप्पदेसर्वधेहि सचदो मुक्को है उड़ गच्छदि सेसा, विदिसावजं गर्दि जंति ॥१॥ प्रकृति ओ थितिबंध अनुभागबंध परदेशबंध एई चार बंध है। एभेद कहिये । इन्ही चहुं बंधतै अबंध के चिदानंद, अग्निशिखा सम ऊर्द्धको सुभावी लहिये । और सब जगजीव तजै निज १ देह जब, परभोको गौन करै तबै सर्ल गहिये । ऐसें ही अनादि- थिति नई कछू, भई नाहि, कही ग्रंथमांहि जिन तैसी सरद-है हिये ॥१॥ . . . . (इति जीवस्य नवाधिकाराः) १ (१) 'अपेक्षासों' ऐसा भी पाठ है परन्तु ऐसा पाठ रखनेपर 'अनंत' शब्दका अर्थ 'नित्य' ऐसा लेना चाहिये. । (२) "सिद्धराजनिको' ऐसा भी पाठ है। womanPROOPPERRORomwwwparents Ramcorpawoonaproacroorbooraparsam000000000000000pnapapaapan r antants entenpa - -- -- - - - - - Stredovertretend
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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