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________________ ama KEEPAwenepmom /NYORO/ARORROADWAPPS ....द्रव्यसंग्रह. विना, देहको प्रमान नाहि लोकाकाश जैसो है। शुद्ध निश्चयन- है यसों असंख्यात परदेशी, आतम स्वभाव धरैः विद्यमान ऐसो । . पुढविजलतेउवाऊ, वणप्फदी विविह थावरेइंदी। विगतिगचदुपंचक्खा,तसजीवा हॉतिसंखादी ॥११॥ पृथ्वीकाय जलकाय अग्निकाय वायुकाय, वनस्पतिकाय पांचो । र थावर कहीजिये । वे इंद्री ते इंद्री चौ इंद्री पंचेंद्रिय है चारों, है जामें सदा चलिवेकी शकति लहीजिये ॥ तन जीभ नाक आंख कान यही पंचइंद्री, जाके जे ते होय ताहि तैसो सर्दहीजिये ।। संख द्वै पिपीलि तीन भौंर चार नर पंच, इन्हें आदि नाना भेद । र समुझि गहीजिये ॥ ११ ॥ है समणा अमणा णेया, पंचेंदिय णिम्मणापरे सव्वे । वायरसुहमेइंदी, सव्वे पजत्त इदरा य॥१२॥ पंच इंद्री जीव जिते ताके भेद दोय कहे, एकनिकै मन एक मनविना पाइये । और जगवासी जंतु तिनके न मन कहूं, एक-1, द्री वेइंद्री तेंद्री चौइंद्री वताइये ॥ एकेंद्रीके भेद दोय सूक्षम वादर होय, पर्यापत अपर्यापत सवै जीव गाइये । ताके बहु है । विस्तार कहे हैं जु ग्रंथनिमें, थोरेमें समुझि ज्ञान हिरदै अनाहै इये ॥१२॥ है मग्गण गुण ठाणेहि य, चउदसहि हवंतितह असुद्धणया। विण्णेया संसारी, सब्वे सुद्धा हु सुद्धणया॥१३॥ चउदह मारगणा चउदह गुणस्थान, होहिं ये अशुद्ध नय १ पादर' ऐसाभी पाठ है । २ पर्याप्त। ३ अपर्याप्त । emplePROPORPORANPAPERO/AROOPARDARPAN Samiprivandrenidhansahiwanipasaupasivashivinavinvengeancanoes Fema@GOODCDDGGEDGEOGOVOGGGC000000 - -
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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