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________________ Wronsorpoornawaraococo-cartoopencorasamadoaorancomcorapcorepresorpreparsvaporancorona PROPERPROPOROSCORPOnPanama १२३२ ब्रह्मविलासमें सावधान जे जिय भये, ते पहुंचे शिव लोक ॥ नाचभाव सब त्यागके, विलसत सुखके थोक ॥ १९॥ नाचत हैं जग जीव जे, नाना स्वांग रमंत देखत हैं तिह नृत्यको, सुख अनंत विलसंत ॥२०॥ जो सुख देखत होत है, सो सुख नाचत नाहि ॥ नाचनमें सव दुःख है, सुख निजदेखन माहिं ॥२१॥ नाटकमें सब नृत्य है, सारवस्तु कछु नाहि || ताहि विलोको कौन है, नाचन हारे,माहिं ॥२२॥ देखै ताको देखिये, जानै ताको जान ॥ जो तोको शिव चाहिये, तो ताको पहचान ॥ २३ ॥ प्रगट होत परमातमा, ज्ञान दृष्टिके देत ॥ लोकालोक प्रमान सब, छिन.इकमें लखलेत.॥ २४ ॥ "भैया' नादक कर्मते, नाचत सब संसार ॥ नाटक तज़ न्यारे भये, ते पहुंचे भव पार ॥ २५ ॥ इति नाटकपचीसी। . Prodbapps/modatabaradiprernadabadoaoradabopapabhoooooooooooo अथ उपादाननिमित्तका संवाद लिख्यते । दोहा. - पाद प्रणमि जिनदेवके, एक उक्ति उपजाय ॥ :: . उपादान अरु निमितको, कहुं संवाद बनाय ॥१॥ - पूछत है कोऊ तहाँ, उपादान किह नाम । । कहो निमित्त कहिये कहा, कंबके हैं इह ठाम॥२॥ उपादान निजशक्ति है, जियको मूल स्वभाव ।। है निमित्त परयोगते, वन्यो अनादि बनाव ॥३॥ HalfamopenpeopaneRow /DROPeopoos
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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