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________________ wwwmaawww Dancontenventoranaparternawanvasavanatodnawane/Maraswation PEOPOPRARRORRRPORONSPIONORRIDWANAPATH नाटकपचीसी. २३१७ भये नरकमें नारकी, लागे करन पुकार ।। छेदन भेदन दुख सहै, यही नाच निरधार ।। ७॥ मान आपको नारकी, त्राहि त्राहि नित होय॥ यह स्वांग निर्वाह है, भूलपरो मति कोय ॥८॥ नित निगोदके स्वांगकी,आदि न जानै जीव ॥ नाचत है चिरकालके, भव्य अभव्य सदीव ॥९॥ इत्तर नाम. निगोद है, तहाँ वसत जे हंस ॥ ते सव स्वांगहि खेलके, बहुर धरयो यह वंस.॥ १०॥ उछरि उछरिकें गिरपर, ते आवै इहि और ॥ मिथ्यादृष्टि स्वभाव धर, यह स्वांग शिरमौर ॥११॥ कबहू पृथिवी कायमें, कबहू अग्नि स्वरूप ॥ कबहू पानी पौन है, नाचत स्वांग अनूप ॥ १२॥ वनस्पतीके भेद वहु, स्वास. अठारह वार॥ तामें नाच्यो जीवयह, धर धर जन्म अपार ॥ १३ ॥ विकलत्रयके स्वांगमें, नाचे चेतन राय ॥ उसीरूप है परणये, वरनें कैसें जाय ॥ १४ ॥ उपजे आय मनुष्यमें, धरै पचेंद्री खांग ॥ अष्ट मदनि मातो रहै, मानो खाई भांग ॥ १५॥ पुण्य योग भूपति.भये, पापयोग भये रंक ॥ . सुख दुख आपहि मानिके; नाचत फिर निशंक ॥ १६ ॥ नारि नपुंसक नर भये, नाना स्वांग रमाहि॥ चेतनसों परिचयं नहीं, नाच नाच खिर जाहिं ॥ १७ ॥ ऐसे काल अनंत हुक, चेतनं नाचत तोहि... - अजहूं आप संभारिये, सावधान किन होहि ॥१८॥ Bappavanemopenweppeword/DP/nomocom anterario retort sovercome to contato c r
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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