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________________ PANAAN MO.MA M MAMAPA-...... SropaparavsanaporpiopenDOGosavdipawanaprabawdapinosapana Fguslamana/monomwOSonwandlendemobains उपादाननिमित्तका संवाद. २३३१ निमितं कहै मोको सबै, जानत है जग लोय ॥ तेरो नाव न जानहीं, उपादान को होय ॥ ४ ॥ उपादान कहै रे निमित, तू कहा करै गुमान ।। 'मोको जाने जीव वे, जो हैं सम्यकवान ॥५॥ कह जीव सव जगतके, जो निमित्त सोइ होय ॥ उपादानकी चातको, पूछ नाही कोय ॥६॥ उपादान विन निमित तू, कर न सकै इक काजः।। कहा भयो जग ना लखै, जानत हैं जिनराज॥७॥ देव जिनेश्वर गुरु यती, अरु जिन आगम सार । इहि निमित्तते जीवं सव, पावत है भवपार ॥८॥ यह निमित्त इह जीवको, मिल्यो अनंती वार॥ उपादानं पलव्यो नहीं, तो भटक्यो संसार ॥९॥ के केवली के साधु कै, निकट भव्य जो होय॥ सो क्षायक सम्यक लहै, यह निमित्तवल जोय ॥१०॥ केवलि अरु मुनिराजके, पास रहैं बहु लोय ॥ पैजाको सुलट्यो धनी, क्षायक ताको होय ॥११॥ हिंसादिक पापन किये, जीव नर्कमें जाहिं ।। " जो निमित्त नहिं कामको, तो इम काहे कहाहि ॥ १२ ॥ 3 हिंसामें उपयोग जिह, रहै ब्रह्मके राच ॥ तेई नर्कमे जात हैं, मुनि नहिं जाहिं कदाच ॥ १३ ॥ दया दान पूजा किये, जीव सुखी जग होय ॥ - जो निमित्त झंठो कहो; यह क्यों मान लोय ॥१४॥ _ 'दयां दान पूजा भली, जगतमाहिं सुखकार ॥ 2. जहँ अनुभवको आचरन तहँ यह वंध विचार॥ १५॥ VaswapwwwPROMPREPAROOPapenewvioupane Reprenco-sobaveta/8000/movebaovembeorapannaprastroco-Dosapnapanapraoorcoops
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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