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________________ PROPORPORAREnwondweenawenWARDS ११७४ ब्रह्माविलासमे www Yamspramanapranamara-coremacroacharpooranpongaranamaranoramaproacre देखहुरे दच्छ एक बात परतच्छ नयी, अच्छनकी संगति विचच्छन भुलानो है । वस्तु जो अभच्छ ताहि भच्छत है रैन दिन, पोषवेको पच्छ करे मच्छ ज्यों लुभानो है ॥ विनाशीक लच्छ है ताहि चच्छुसों विलोकै थिर, वहै जाय गच्छ तब फिरै ज्यों है दिवानो है। स्वच्छ निज अच्छको विलच्छकै न देखें पास, मोह, जच्छ लागे वच्छ ऐसो भरमानो है ॥ ७॥ जगहि चलाचल देखिये, कोउ सांझ कोउ भोर ॥ लाद लाद कृत कर्मको, ना जानों किहि ओर ॥ ८॥ नरदेह पाये कहा पंडित कहाये कहा, तीरथके न्हाये कहा ए तीर तो न जैहै रे । लच्छिके कमाये कहा अच्छके अघाये कहा, है छत्रके धराये कहा छीनता न ऐहै रे ॥ केशके मुंडाये कहा भेषके बनाये कहा, जोवनके आये कहा जराहू न खैहै भ्रमको विलास कहा दुर्जनमें वास कहा, आतम प्रकाश विन पीछे पछितहै रे ॥९॥ दुःखित सब संसार है, सुखी लसै नहिं कोय ॥ ए एक सुखित जिन धर्म है, जिहँ घट परगट होय ॥१०॥ । नरदेह पाये कहो कहा सिद्धि भई तोहि, विष सुख सेये सब है सुकृत गमायो है । पंच इन्द्रि दुष्ट तिन्हें पुष्टकर पोष राखै, है आय गई जरा तब जोर विललायो है ॥ क्रोध मान माया लोभ चारों चित रोक बैठे, नरक निगोदको संदेसो वेग आयो है। खाय चल्यो गांठको कमाई कोडी एक नाहिं, तोसो मूढ दूसरो न ढूंढ्यो कहूं पायो है ॥ ११॥ है जाके परिग्रह बहुत है, सो बहु दुखके माहिं ॥ विन परिग्रहके त्यागते, परसों छुटै नाहि ॥ १२॥ Www/ammonwanemewasvaroppeppenpanwar gawranorandobordosprasadhurasuprem-upitalbrdstsearbasnasaMODwanwRESED
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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