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________________ SAMANTAS dise ॐ अनित्य पचीसिका. १७३ रीस कर्म अरि डारै पीस, लोकालोक जाहि दीस पंथको बतावही । ताके चर्ण निश दीश बंदै भविनाय शीस, ऐसे जगदीश पुण्यवंत जीव पावही ॥ १ ॥ दोहा . परयो कालके गाल में, मूरख करै गुमान ॥ देहै छिनमें दाव जो, निकस जांहिंगे प्रान ॥ २ ॥ कवित्त. मिथ्यामत नासवेको ज्ञानके प्रकाशवेको, आपापर भासचेको भानसी वखानी है। छहों द्रव्य जानवेको वंधविधि भान वेको, आपापर ठानवेको परम प्रमानी है | अनुभो बतायवेको जीवके जतायचेको काहु न सतायवेको भव्य उर आनी है । जहाँ तहाँ तावेको पार उतारवेको, सुख विस्तारवेको यहै जिनवा - नी है ॥ ३ ॥ आज काल जम लेत है, तू जोरत है दाम ॥ लक्ष कोटि जो धर चलै, ऐहै कौनै काम ॥ ४ ॥ . कवित्त, पंच वर्ण वसनसो पंच वर्ण धूलि शाल, मान थंभ सत्य वैन देखे मान नाश हैं । दयाको निवास सोही वेदीको प्रकाश लशै, रूपेको जुकोट सु तौ नो करम भास है । द्रव्य कर्म नाम हेम कोट मध्य राजत है, रतनको कोट भाव कर्मको विलास है। ताके मध्य चेतन सु आप जगदीस लसै, समोसर्न ज्ञानवान देखे निजपास है ॥ ५ ॥ लागो है जम जीवको, बोलत ऐसें गाजि ॥ आज कालमें लेत हूं, कहाँ जाहुगे भाजि ॥ ६ ॥ សូមបាន sean ॐ ॐ
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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