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________________ ज अनित्य पचीसिका. १७५ थानी हैके मानी तुम थिरता विशेष इहां, चलवेकी चिंता है कछू है कि तोहि नाहिने । जोरत हो लच्छ बहु पाप कर रैन दिन, सो तो परतच्छ पांय चलवो उवाहिने ॥ घरीकी खबर नाहिं सामो सौ वरप कीजै, कौन परवीनता विचार देखो काहिने । आतमके काज विना रज सम राज सुख, सुनो महाराज कर कान किन ? दाहिने ॥ १३ ॥ शयन करत है रयनको, कोटिध्वज अरु रंक ॥ सुपने में दोऊ एकसे, वरतें सदा निशंक ॥ १४ ॥ मात्रिक कवित्त. नटपुर नाव नगर इक सुंदर, तामें नृत्य होंहिं चहुं ओर । नायक मोह नचावत सबको, ल्यावत स्वांग नये नित जोर ॥ उछरत गिरत फिरत फिरकी दै, करत नृत्य नानाविधि घोर । इहि विधि जगत जीव सब नाचत, राचत नाहिं तहां सु किशोर ॥ १५ ॥ कर्मन चस जीव है, जहँ खँचे तह जाय ॥ ज्यों हि नचावे त्यों नचे, देख्यो त्रिभुवनराय ॥ १६ ॥ मात्रिक कवित्त. Jean Goat इंद्र हरे जिहँ चन्द्र हरे, सुरवृन्द्र हरे असुरादिक जोय । ईश हरे अवनीस हरे, चक्रीश हरे बलि केशव दोय ॥ शेष हरे पुर देश हरे सब, भेस हरे थितिकी गत खोय । दास कह शिवरास विना, इहि काल बलीसौं बली नहिं कोय ॥ १७ एक धर्म जिनदेवको वसै जासु उर माहिं ॥ ताकी सरबर जगतमें, और दूसरो नाहिं ॥ १८ ॥ कवित्त. पूरवही पुण्य कहूं किये हैं अनेक विधि, ताके फल उदै आज Jedby ककककककक ककककक ॐ ॐ
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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