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ब्रह्मविलासमें ताते याको काढियें, कहै तिया समुझाय ।। विद्याधर कहै हट तजहु, पंथ अकारथ जाय ॥३२॥ तीय कहै चलवो नहीं, इहि विन काढे आज ॥ स्वामि वडो उपकार है, कीजे उत्तम काज ॥ ३३ ॥ तिय हटविद्याधर तहां, उतरयो निजहिं विमान ॥ आय कह्यो तिहँ नर प्रत, निकसि निकसि अज्ञान ॥३४॥ आवै तो हम बांह गहि, तोकों लेय निकासि ॥ निज विमान वैठायके, पहुंचा तो वास ॥ ३५ ॥
चौपाई. , ऐसे वचन सुनत निज कान । बोलै पुरुष सुनहु हितवान ।। एक बूंद छत्तासो खिरै । सो अवके मेरे मुख गिरे ॥३६॥ ताको अवहीं चख सरवंग । तव मैं चलूं तुमारे संग ॥ , जब वह बूंद परी मुख माहिं । तवदूजीपरमन ललचाहि॥३७॥
अब यह जो आवैगी सही। तो चलहूं कछु धोको नही ।। । दूजी बूंद परी मुख जान । तवतीजीपर करी पिछान||३०॥
इह विधि वृंद स्वादके काज । लाग रह्यो नहिं कछू इलाज | ६ विद्याधर दै हाँक पुकार निकसैनहीं चल्यो तव हार॥३९॥
आय विमान भयो असवार । निज थानक पहुंच्यो तिहवार ।। तबही भवि मुनिके नमि पांय । कहा कही प्रभु कह समुझाय ४०
हम नहिं समुझे यह दृष्टांत । कहहु प्रगट प्रभु सव विरतांत॥ है को नर को गज को वनकूप कोअहिको वट जटा अनूपा४िशा
को अंदर को मधुकी बुंद । को माखी जो दे दुखदुंद ॥ कौन विद्याधर कहो समुझाय । जातें सबसंशय मिट जाय॥४२॥
(१) हितैषी. MampcompRORDPREPAREDMRownpreeDEO
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