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________________ sasaramaerancomwapasanauranoranaormapanaOMEOPanawrenadanepannapranaprapoorangeena rapmajwapaparpen p eopornwapwapUNE gam.मधुविन्दुककी चौपई. वरकी शाखा हाली सबै । मधुकी बूंद गिरी इक तवै ॥ इह राख्यो तवहीं मुखफार आवत ग्रहण करी निरधारा२शा । झकझोरत माखी उडि जेह । आय लगी सव याकी देह ॥ काटै तन पै वेदै नाहिं । मन लाग्योमधु छत्ता माहि॥२२॥ एक बूंद जब मुख महिं पर । तव दूजी मनसा करै ॥ है लगी दृष्टि छत्वासों जाय । दुखसंकटसों नहिं अकुलाय २३ है, सोरठा.' तव तिहँ थानक कोय, विद्याधर आकाशमैं ॥ जाहिं पुरुप तिय दोय, बैठे निजहि विमानमें ।। २४ ॥ तिय निरख्यों तिहँ वार, कोउ पुरुष संकट परयो । हे पिय! दुखहिं निवार, निराधार नर कूपमें ॥ २५॥ है दुख अपार अति घोर, परयो पुरुष संकट सहै ॥ कछु न चलत है जोर, हे प्रभु याहि निवारिये ॥२६॥ कहे विद्याधर वैन, सुनहु प्रिया तुम सत्य यह ॥ यह मानें इत चैन, निकसनको क्योंही नही ॥ २७ ॥ दोहा. प्रिया कहै प्रियतम सुनो, किह सुख मान्यो चैन । . यह अटवी यह कूप गज, अहि मखि मूसा ऐन ॥ २८ ॥ कहै विद्याधर प्रिये सुनो, मधु विदव रस लीन ॥ यह सुख मान रच्यो यहां, दुख अंगीकृत कीन ॥ २९ ।। ए सव दुखहि विचारके, मधुविंदवके स्वाद ॥ लग्यो मूढ संकट सहै, कहिवो सवही वाद ॥३०॥ बहुर प्रिया कहै सुनहु प्रिय, ऐसी कबहुँ न होय ॥ एते संकट जो सहै, सो सुख मानै कोय ॥ ३१ ॥ WwwPDPORPORARWADERemen@norons Panasamacanapanasansomwanapanasanveencompranawapboanapapnasanapos
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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