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________________ PROPERamRWANDERSTARSenopow/MODog __ मधुविन्दुककी चौपई. दोहा. M साद तव मुनिवर दृष्टांत विधि, कहै भविक समुझाय ॥ सावधान है सुनहु तुम, कहूं कथन गुणगाय ॥ ४३ ॥ चौपाई. abovesupranavroupvasanamasuoreanupasanapooranvebavanaprennaprasadmaavasvasavane यह संसार महा वन जान । तामहिं भवभ्रम कूप समान | गज जिम काल फिरत निशदीस । तिहपकरन कहूं विस्वावीस ४४ वटकी जटा लटकि जो रही । सो आवा जिनवर कही। तिहँ जर काटत मूंसा दोय । दिन अरु रैन लखहु तुमसोय ४५ है मांखी चूंटत ताहि शरीर । सो वहुरोगा दिककी पीर ॥ अजगर परयो कूपके वीच । सो निगोदसवतें गतिनीच॥४६॥ है याकी कछु मरजादा नाहिं । काल अनादि रहे इह माहि ॥ तात भिन्न कही इहि ठौर । बहुं गतिमहित भिन्न न और ४७ है में चहुं दिश चारहु महा भुजंग । सो गति चार कही सरवंग ॥ मधुकी वूद विप सुख जान जिहँ सुख काजरह्यो हितमान४८ ज्यों नर त्या विषयांश्रित जीव । इह विधि संकट सह सदीव ।। विद्याधर तहँ सुगुरु समान । दै उपदेश सुनावत कान ॥४९ आवहु तुमहिं निकाशहिं वीर । दूर करहिं दुख संकट भीर ॥ तबहू मूरख माने नाहिं । मधुकी बूंदविपै ललचाहिं ५० ३ इतनो दुख संकट सह रहै । सुगुरुवचन सुन तज्यो न चहै। तसे ज्ञानहीन जियवंत । ए दुख संकट सहै अनंत ॥५१॥ विप सुखन मधुविंदव काज । मानत नाहिं वचन जिनराज ॥ ह सहत महा दुख संकट घोर निकस नचलत वधूशिवओर.५२ MorenasapnaPRAMOMEROAngnpanwww RupesapronpravaprdbabebabeasopraavaapasvdobroboorboorbederabasvobhopaDAS
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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