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________________ ११४ 43/29 330 ब्रह्मविलास में te de de de de १३ | राग सोरठ. अरे सुन जिनशासनकी बतियाँ, जातें होय परमं सुखि छतियां, अरे०टेक । निजपर भेद करहु दिन रतियां, ज्यों प्रगटहिं शिवशकतिअनँतियां, अरे० ॥ १ ॥ सुख अनंत सव होय निकतियां, मिटहि सकल भव भ्रमकी घतियां, अरे० ॥ २ ॥ परम ज्योति प्रगटै परभतियां, 'भैया' निजपद गहु निज मतियां, अरे० ॥ ३ ॥ १४ । राग कान्हरो. देखो मेरी सखीये आज चेतन घर आवै ॥ काल अनादि फिर चो परवशही, अब निज सुधहिं चितावै, दे० ॥१॥ जनमजनमके पाप किये जे, ते छिन माहि बहावै ॥ श्रीजिनआज्ञा शिरपर धरतो, परमानंद गुण गावै, देखो० ॥२॥ देत जलांजुलि जगत फिरनको, ऐसी जुगति बनावै ॥ विलसै सुख निज परम अखंडित, भैया सब मनभावै, देखो ॥ ३ ॥ १५ । राग केदारो. कैसे देऊं करमन दोष कैसें० ॥ टेक ॥ मगन है है आप कीने, गहे रागरु दोष ॥ विषयोंके रस आप भूल्यो, पापसों तन पोस, कैसे ० ॥ १ ॥ देवधर्म गुरु करी निंदा, मिथ्या मदके जोस ॥ फल उदै भई नरकपदवी, भजोगे कै कोस, कैसें० ॥ २॥ : किये आपसु बनै, भुगते, अब कहा अफसोस । दुखित तो बहु काल बीते, लही न सुख जल ओस, कैसें० ॥ ३ ॥ do and but d Teaseras sase/etv
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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