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________________ wwwwwwww mara wenn man einer webwerwetu Tamanten Rupeewanapanasanwrsanp/surenawrappanPORDER परमार्थपदपंक्ति. ११५३ क्रोध मानरु लोभ माया, भरयो तन घट ठोस ॥ . चेत चेतन पाय नरभव, मुकति पंथ सुघोप, कैसें० ॥ ४॥ . १६ । राग केदारो. कहो परसों प्रीति कीन्हीं, कहा गुण तुम जान। . चतुर चेतन चितविचारो, कहहुँ पुनि पहिचान ॥ १॥ वे अचेतन तुम सुचेतन, देखि दृष्टि विनान । परहि त्याग स्वरूप गहिये, यहै वात प्रमान ॥ २॥ १७ । राग, अडानो रे मन ऐसा है जिनधर्म, रे मन० टेक ॥ जाके दरस सरस सुख उपजत, मिटत सकल भव भने । शुद्धस्वरूप सहज गुणसागर, जानत सवको मर्म, रे मन० ॥१॥ ज्ञान दरस चारित कर राजत, परसत नाहीं कर्म ॥ निश्चय ध्यान धरो वा प्रभुको; ज्यों प्रगटै पद पर्म, रे मन० ॥२॥ . १८ । दोहा (विहाग.) श्रीजिन चरणांवुज प्रते, वंदत भवि धर भाव । केवल पद अवलंवि निज, करत भगत व्यवसाव ॥१॥ स्वर्ग मृत्यु पाताल में, श्री जिनविंव अनूप ॥ . तिहँ प्रति वंदत भविक नित, भावसहित शिवरूप ॥ २॥ १९ । राग अडानो. है भविक तुम वंदहुमनधर भाव, जिनप्रतिमा जिनवरसी कहिये,भ०॥ जाके दरस परमपद प्रापति, अरु अनंत शिवसुखलहिये, भविकार निज स्वभाव निरमल है निरखत, करम सकल अरिघट दहिये। सिद्ध समान प्रगट इह थानक, निरख निरख छविउर गहिये,भ०२॥ ManpNAPAMPAWAREPARWAmoeopowroonam forenwone wawdawdawdawdawwarciemorde r stwowerowe
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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