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________________ G............................................... . MEDARNAGrandsapanolonipadventUARMATIESARVASVEDEGREneepawanapana spaperweneeWARMWARSEPARAMPARAN परमार्थपदपंक्ति. ३३ ॐ दूर दिसावर चलत आपही, कोऊ न राखन हारो। कोऊ प्रीति करो किन कोटिक, अंत होयगो न्यारो, कहा॥२॥ धनसों राचि धरमसों भूलत, झूलत मोहमझारो। इहि विधि काल अनंत गमायो, पायो नहि भवपारो, कहा ॥३॥ ___ सांचे सुखसों विमुख होत है, भ्रम मदिरा मतवारो। चेतहु चेत सुनहरे भइया, आपही आप संभारो, कहा०॥४॥ ११ । पुनः ते गहिले भाई ते गहिले, जगराते अबके पहिले। आपा पर जिहँ भेद नजान्यो, ते वूडेभवभ्रमवहले,ते गहले॥१॥ __ धन धन करत फिरत निशिवासर, तिनको जनम गयो अहले। भ्रममें मगन लगन पुदगलसों,तेनर भवसागर टहले,ते गहले॥२॥ 3 क्रोध मान माया मद माते, विषयनके रस माहि रले। है 'भैया'चेत चतुर कछु अबकें, नहि तोनरक निगोदहिले, ते ग०३, .. १२ । राग केदारो. है छोडिदे अभिमान जियरे छाडिदे०॥ टेक काको तू अरु कौन तेरे, सवही हैं महिमान । ए देख राजा रंक कोऊ, थिर नहीं यह थान, जियरे० ॥१॥ __ जगत देखत तोरि चलबो, तूभी देखत आन । घरी पलकी खबर नाही, कहां होय विहान, जियरे० ॥२॥ त्याग क्रोधरु लोभ माया, मोह मदिरापान ।। है राग दोपहिं टार अन्तर, दूर कर अज्ञान, जियरेः ॥३॥ - भयो सुरपुर देव कवहूं, कबहुं नरक निदान । इम कर्मवश वहु नाच नाचे, भैयाआप पिछान, जियरे॥४॥ १ वावले, २ राचे, . . landAAORoopcopeprosphondwanpOS SODERamanapraapanaana/divalpapaeraparbardas/en-DramapraavansDEENDrama - -
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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