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________________ జ AUDIO/ARRAURANGAR300PR O PORPOPOOR परमार्थपदपंक्ति. ..d om.np है धन यौवन आये, रह अरुझाये, सो संध्याका वरना है। विषयारस रातो, रहे सुमातो, अंतअगनिमें जरना है, हेमूढ०॥४॥ कैदिनको जीवो, विपरस पीवो, बहुरि नरकमें परना है | जैसी कछु करनी, तैसी भरनी,बुरे फैलसोंडरना है।।हेमूढ० ॥५॥ छिन छिन तन छीजे,आयुन धीज, अंजुलिजल ज्यों झरनाहै।। जमकी असवारी,रहतयारी,तिनसों निशदिन लरना है,हेमूढ०॥६॥ हुँ के भौ फिर आयो, अंत न पायो, जन्मजरा दुख भरना है। है क्या देख भुलाने, भरम विरानें,यह स्वपनेका छरना है, हे मूढ०॥७॥ है दुरगतिको परिवो, दुखको भरियो, काल अनंतहु सरनाहै। परसों हित माने, मूढ न जाने, यह तन नाहिं उवरना है, हेमूढ०॥८॥g. है मिथ्यामत लीन्हें, आपन चीन्हें, कर्म कलंकन हरना है ।। जिनदेव चितारो,आपुनिहारो,जिनसोंजीवउधरनाहै,हेमूढ०॥९॥ . दोहा. . जनम मरनतै नाथ क्यों, जीव चतुर्गति माहिं ।। पंचमि गति पाई नही, जो महिमा निजमाहिं ॥१०॥ निज स्वभावके प्रगटते, प्रगट भये सब दुर्व ॥ . - जनम मरन दुख त्याग, जाननलागौ सर्व ॥११॥ 'भैया' महिमा ज्ञानकी, कहै कहां लों कोय || कै जानै जिन केवली, के समदृष्टी होय ॥ १२ ॥ इतिशिक्षावली। . . . अथ परमार्थपदपंक्ति. १। राग भैरो.. . ई या देहीको शुचिकहाकीजे,जासों धोइये सोईपै छीजै, या 'BarpardPORPORANSaamanapaseenawarPENTS Erepreneerasupreparanprasaramzanaprapeparenessferredamarapapromoompramari commercecoranapandanavavaranataranavasarrangement
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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