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________________ go da an ge de de de de de geder indedh ब्रह्मविलास में १०८ धरणीन्द्र औ पदमावती तहँ, आय जिन सेवंतये । सुअनंत बल जुत आप राजत, मेरु ज्यों अचलत्तये । करि कर्म चार विनाश ताछिन, लह्यो केवल तत्तये । पूजिये पास जिनंद भविजन, नगर श्री अहिछत्तये ॥४॥ शत इंद्र मिल कल्याण पूजा, आय विविध रचत्तये । तिहँ काजतैं यह भूमि महिमा, जगतमें प्रगटत्तये ॥ भवि जात्रि आवें जिनहि ध्यावें, निजातम सर्दहत्तये । पूजिये पास जिनंद भविजन, नगर श्रीअहिछत्तये ||५|| SEPARAAN NA pm दोहा. सावधान मन राखिकें, जे जिनगुण गावंत ॥ संपत्ति सुख तिनको सदा, गनत न आवै अंत ॥ ६ ॥ सत्रहसौ इकतीसकी, सुदि दशमी गुरुवार ॥ कार्तिकमास सुहावनो, पूजे पार्श्वकुमार ॥ ७ ॥ इति श्रीअहिक्षितिपार्श्वनाथनिनस्तुति. raswa indoah sechd9/263 at de te da ga je da se de अथ शिक्षा छंद. दोहा. . देह सनेह कहा करें, देह मरन को हेत । उत्तम नरभवपायकें, मूढ अचेतन चेत ॥ १ ॥ मरहठा छंद. हे मूढ अचेतन, कछुइक चेतो, आखिर जगमें मरना है । नरदेही पाई, पूर्व कमाई, तिससों भी फिर टरना है ० ॥ टेक ॥ २ ॥ क्यों धर्म विसारो, पापचितारो, इन बातन क्या तरना है ॥ जो भूप कहाये, हुकुम चलाये, तौ भी क्या ले करना है, है मूढ ॥ ३ ॥ de de goe dato da geart
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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