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________________ Empoornoonsorensooccoooooooooomavipopropanoopapabood Facrosopanponderweensomgardachpande ब्रह्मविलासमें देहीको आटेको जो जो धोइये सो सो भरी, देखहुदृष्टि विचारके । खरी. या देहीको० ॥२॥ दशो द्वार निशिवासर वहनी, कोटि जतन किये थिर नहिं रहनी, या देहीको० ॥ ३॥ तत्त्व यह है है आतम रसपीजे, परगुण त्यागजलंजलि दीजे, या देहीको०॥४॥ २ राग देव गंधार। ___अब मैं छायो पर जंजाल, अब मैं • टेक। लग्यो अनादिमोह भ्रमभारी,तज्यो ताहि तत्काल अवमैं॥१॥ आतम रस चाख्यो मैं अदभुत,पायो परमदयाल, अवमै० ॥२॥ सिद्ध समान शुद्ध गुण राजत, सोमरूपसुविशाल, अवमैं॥३॥ ३। राग विलावल। या घटमैं परमात्मा चिन्मूरति भइया ॥ ताहि विलोकि सुदृष्टिसों पंडित परखैया, या घटम०॥१॥ ज्ञान स्वरूप सुधामयी, भवसिंधु तरैया ॥ तिहूं लोकमें प्रगट है, जाकी ठकुरैया, या घटमें० ॥२॥ आप तरै तारें परहिं, जैसें जल नइया । केवल शुद्ध स्वभाव है, समुझे समुझेया, या घटमें ॥३॥ देव वहै गुरु हैं वहै, शिव वहै वसइया ॥ ॐ त्रिभुवन मुकुट चहै सदा, चेतौ चितवइया, या घटमें० ॥४॥ । पुनः राग विलावल. है नरदेही बहु पुण्यसों, चेतन तैं पाई ।। ताहि गमावत वावरे, यह कौन बड़ाई नरदेही॥१॥ * जप तप संयम नेम व्रत, करि लेहुरे भाई ॥ फिर तोको दुर्लभ महा, यह गति ठकुराई, नरदेही ॥२॥ OmPcom /ODAVARARHARPATRAwers mavatwanavbeonaprasadrapuranaaranvidivospranavarapracteranavshapanp/abardocons
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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