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________________ Amrwwwwwwwwwww REWARRIARPARIVARDARPANDARPANDROPORARY ........पाश्वनाथजिनस्तुति. है दोष छियालीस टालकै जी, लेवहि शुद्ध आहार ।। श्रावकको कुल जानकजी; जल अचवें तिहवार, मुनीश्वर०॥७॥ है महा तपस्या व्रत करैजी, सहै परीसह घोर ॥ . . वीस दोय बहु भेदसोंजी, काय कसै अतिजोर, मुनीश्वरा॥ एनिमल कर निज आतमाजी, च. श्रेणि शुध ध्यान । 'भैया' ते निह सहीजी, पावहिं पद निर्वान, मुनीश्वर० ॥९॥ . दोहा. यह श्रीमुनिगुणमालिका, जो पहिरे उरमाहिं॥ तिनको शिवसंपति मिले, जनममरनभय नाहिं ॥१०॥ इति मुनिश्वर जयमाला. अथ अहिक्षिति पार्श्वनाथजिनस्तुति. दोहा. अश्वसेन अंगज विमल, बामाके कुलचंद ॥ तिहँ केवल कल्याण भवि, पूजिये पार्वजिनंद ॥१॥ छंद. पूजिये पास जिनंद भविजन, नगर श्रीअहि छत्तये । जिहँ थान प्रभुजू ध्यान धरिये, आत्मरस महँ रत्तये ॥ . उपसर्ग कमठ अज्ञान कीन्हों,क्रोधसों अगिनत्तये ।। वहु वाघ सिंह पिशाच व्यंतर, गजांदिक मदमत्तये ॥२॥ कोऊ रुंडमाला पहरि कंठहि, अगनि जाल मुकंत्तये। महाकाल रूप त्रिकाल सूरति, भय दिखावत गत्तये ॥ ... . महि वरप वरपा क्रूर थाक्यो ,भव समुद्रहिं पत्तये। पूजिये पास जिनंद विजन, नगर श्री अहिछत्तये॥३॥ 'Haor pranaerPORPORARIANDEReponwondo senavanarenasanapranapranepanawarenesenawanapanacanaoremapemapps/apsuwaverana RaranaseraoadmDCPISODGOALDApprencorenapcopemornp/opensorenapanprenopoons
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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