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________________ 9 san sans १०४. ब्रह्मविलास में समुच्चयवर्त्तमानवीसतीर्थंकर कवित्त सीमंधर जुगमंद्र बाहु ओ सुवाहु संजात स्वयंप्रभु नाव तिहुं पन ध्याइये। ऋषभानन अनंतवीर्य विशालसूरप्रभ, वज्रधरनाथके चरण चितलाइये ॥ चंद्रानन चन्द्रबाहु श्रीभुजंगमईश्वर, नेमिप्रभुवीरसेन विद्यमान पाइये । महाभद्र देवजस अजितवीरज भैया, वर्त्तमानवीसको त्रिकाल सीस नाइये ॥ २२ ॥ इति वर्त्तमानजिनविंशतिका. AAMANA अथ परमात्माकी जयमाला लिख्यते । दोहा. परम देव परनाम कर, परमसुगुरु आराधि । परम सुधर्म चितार चित, कहूं माल गुणसाधि ॥ १ ॥ चौपाई. एकहि ब्रह्म असंखप्रदेश । गुण अनंत चेतनता भेश ॥ शक्ति अनंत लसै जिह माहिं । जासम और दूसरो नाहिं ॥२॥ दर्शन ज्ञान रूप व्यवहार । निश्चय सिद्ध समान निहार ॥ नहि करता नहिं करि है कोय । सदा सर्वदा अविचल सोय ॥३॥ लोकालोक ज्ञान जो धेरै । कबहुँ न मरण जनम अवतरै ॥ सुख अनंत मय जाससुभाव । निरमोही बहु कीने राव ॥ ४ ॥ क्रोध मान माया नहिं पास। सहजै जहाँ लोभको नास ॥ गुण थानक मारगना नाहिं । केवल आपु आपुही माहिं ॥५॥ परका परस रंच नहिं जहां। शुद्ध सरूप कहावै तहां ॥ अविनाशी अविचलअविकार । सो परमातम है निरधार ॥६॥ 36 go do qe do te da se as
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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