SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [१४२] धर्मामृत १ मद्यपान याने कोई भी केफी पदार्थ का सेवन करनामद्यपान करना, किसी भी आसवको पोना, तमाकु सुंघना, बीडी पीना, चरस गांजा इत्यादि पीना । २ विषय विलास में मस्त रहना । ३ क्रोध लोभ आदि दुष्ट संस्कारोंको पुष्ट बनाना । ४ किसीकी व्यक्तिगत निंदा करना । ५ जीवन के वास्तविक विकासको रोध करनेवाली कथाएं कहना वा पढना अथवा मिथ्या गपशप लगाना । इस प्रकार जैनशास्त्र में प्रमाद के पांच भेद बताये हैं । २१ निरखो - देखो - बराबर नजर करो । सं० निर्+ईक्ष धातुसे प्रा० 'निरिक्ख' । 'निरिक्ख' पदसे 'नीरखना' | गूजराती 'नीरखवं' | 'निरिक्खउ' क्रियापद से निरीखड - नीरखो । २२ करो सं० कर करतु- प्रा० करउ । 'करउसे करो ' २३ वधार्या - वढाया पूर्वोक्त 'सुधारो' की (देखो टिप्पण १३) व्युत्पत्तिमें जो कुछ बताया है वह सब प्रस्तुत 'वाय' के संबंध में भी अक्षरशः समजना | 'वधार्थी' भूतकालदर्शक कृदंत है। उसकी निष्पत्ति का क्रम इस प्रकार बन सकता है। सं० 'वृधू' से प्रा० बधू । प्रस्तुत 'वधू' को प्रेरणा सूचक 'आर' प्रत्यय जोडने से 'धार'
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy