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________________ फिलावो [१४३] और 'वार' का भूतकृदंत 'वधारिय' । 'वधारिय' के प्रथमा का बहुवचन ' वधारिया' । ' वधारिया' का त्वरित उच्चारण 'वधार्या' | अथवा अन्य क्रमः-‘वृद्धिकार' - बुद्धिआर - वद्धिआर - वचार - बधार । प्रस्तुत 'वार' का भूतकृदंत 'वधारिअ' से उक्त रीति से 'वधार्या' । २४. फिलाबो- प्रसार करो । मूल धातु प्रा० 'पयल' का प्रेरकरूप 'पयल्लावेउ' । 'पयल्लावेउ' से 'फिलावो' वा 'फेलावो' क्रियापद आता है । इस सम्बन्ध में अधिक विवेचन 'फैल' को टि०१८ में किया गया } २५. गहो - ग्रहण करो । सं० ग्रह प्रा० गह गहउ - गहो । २६. रमावो -- रमण करो - रमो । मूल धातु 'रम्' से प्राकृत प्रेरक 'रमाउ' | 'रमा' से प्रस्तुत रमावो । प्राकृत में प्रेरणादर्शक 'अ' 'ए' 'आव' और 'आवे' प्रत्यय का उपयोग है । इसके लिए हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण का अध्याय अष्टम, तृतीयपाद सूत्र १५० - १५१ - १५३ को देखना चाहिए । भजन ४ था २७. तसकर-चोर डाकु - लुंट करनेवाले । सं० ' तस्कर' के संयुक्त 'क' में 'भ' को अंतःस्वरवृद्धि
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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