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________________ परमाद _ [१४१] कांड श्लो० ४७) अमरकोश का टीकाकार महेश्वर कहता है कि " चत्वारि धान्यादिराशेः” अर्थात् पुञ्ज, उत्कर, राशि और . कूट शब्द से धान्य वगेरे का ढेर, बोधित होता है। पुञ्ज माने धान्य आदि का बडा ढेर । ' पुञ्ज' शब्द से 'पुञ्जिका' शब्द हुआ और 'पुञ्जिका' से प्राकृत 'पुंजिआ' शब्द आया। प्रस्तुत 'पूंजी' शब्द, 'पुंजिआ' से आया मालूम होता है । 'पुञ्ज' का उक्त अर्थ और 'पुञ्ज' से बना हुआ 'पूंजी' का प्रचलित अर्थ उन दोनों अर्थों में विशेष भेद नहि है । धान्य, घर, आभूषण, बाडी, खेत यह सब 'पूंजी' में ही समा जाता है। प्राचीन समय में तो धातु के कागजं के वा चमडे के मुद्रित सिकों की अपेक्षा धान्य वगेरे ही स्थिर धन गिना जाता था। २० परमाद-प्रमाद-आलस्य-स्वार्थपरायणता । सं० 'प्रमाद' से सीधा ‘परमाद' पद आया है । 'प्र' के संयुक्त उच्चारण को सरल करने के लिए उसमें 'अ' कारका प्रक्षेप किया गया है। इस प्रकार कितने ही संयुक्त अक्षरों में 'अन्तःस्वरवृद्धि होती है। 'काज' शब्द का टिप्पण १२ देखो । परमाद' का अर्थ आलस्य है । आलस्य का स्पष्ट भाव स्वार्थपरायणता है । अपने निजी वैभव विलास के हेतु, दूसरे प्राणिओं के प्राणों की उपेक्षा-अपने से भिन्न मनुष्य वगेरे प्राणिओं के जीवन की उपेक्षा का नाम स्वार्थपरायणता है।
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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