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________________ जीवन का दूसरा दौर नहीं। औरोंकी सम्मिलित खुशीसे आपका पलड़ा भारी था। उस दिन आपकी कल्पना साकार बनी थी, आपके सपने पूरे हुए थे। आपने एक जगह अपनी पूर्व कल्पनाका जो चित्र खींचा है, उससे मैं पाठकोंको वंचित नहीं रखूगा :_ "मैं बचपनमे माताजीको पूछता ही रहता-पूज्यजी महाराज कहा है ? अपने यहा कब आयेगे ? जब कभी पधारते, सचमुच उनकी वह दिव्य-मूर्ति मेरे बाल-हृदयको खींचती रहती। मैं उनके सामने देखता ही रहता। उनका वह कोमल शरीर, गौर वर्ण, दीर्घ संस्थान, सिर पर थोड़ेसे सफेद बाल, चमकती आखे मैं देखता, तब सोचता- क्या ही अच्छा हो, मैं छोटा सा साधु बन हर वक्त उपासनामे वेठा रहूं।" मनुष्य संकल्पका पुतला होता है। दृढ संकल्पसे एक न एक दिन असाध्य मालूम होनेवाली चीज भी साध्य बन जाती है। आदमीमे धैर्य टिकता नहीं। वह अपने सकल्पको बनाए नहीं रख सकता । थोडी सी कठिनाईसे डिग जाता है। इसलिए वह लक्ष्य तक पहुंचनेमे सफल नहीं होता। दृढताके साथ होने वाले सतत मानसिक संकल्पका अपने पर और आसपासके वातावरण पर पूर्ण प्रभाव पड़ता है। आपकी दीक्षा होने में आपके पूर्व संकल्पने पूरा हाथ बटाया, यह हमें निर्विवाद स्वीकार करना चाहिए।
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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