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________________ ३० आचार्य श्री तुलसी के लिए समस्त पापकारी प्रवृत्तियोंका - हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रहका त्याग कराया। आपने वह स्वीकार किया । गृहस्थ जीवनसे ताता टूट गया। मुनि संघ मे मिल गये । वह पुण्य दिन था ( वि० सं० १९८२, पौप कृष्णा ५ ), वह पुण्यवेला थी आपके भविष्य और संघ के सौभाग्य - निर्माण की । सब प्रसन्न हुए । कालुगणी, मगनलालजी स्वामी और चम्पालालजी स्वामी अधिक प्रसन्न हुए । क्यों उसमे रहस्य है । हुए, तेरापन्थके आचार्य अपने यथेष्ट उत्तराधिकारीको पाये बिना पूरे निश्चिन्त नहीं बनते । कालुगणी इस बात की खोजमे थे। उन्होंने आपको पाकर सन्तुष्टिका अनुभव किया। आपकी दीक्षा उनकी खोजको पूर्ण सफलता थी । मगनलालजी स्वामी बचपनसे ही कालुगणीके साथी और अभिन्नहृदय रहे । कालुगणीकी इच्छा पूर्ति ही उनकी इच्छापूर्ति थी । इसके सिवाय आपकी दीक्षाके प्रेरक भी रहे । अपनी प्रेरणाकी सफलता मे अधिक खुशी हो, यह स्वाभाविक ही है। चम्पालालजी स्वामी एक तो आपके भाई ठहरे, वह भी दीक्षित । दूसरे उन्होंने आपको दीक्षा भावनासे दीक्षा होने तक बड़ा श्लाघनीय प्रयत्न किया। आप उनके इस प्रयत्नको अपने प्रति महान् उपकार मानते है । सम्भव है, उनके प्रयत्नमे कुछ शैथिल्य होता तो इतना शीघ्र दीक्षा - कार्य सम्पन्न न होता । इस लिए वे भी अपनी विशेष प्रसन्नता के अधिकारी है । मैं मूलसे दूर चला गया। मैंने आपकी स्थितिको छुआ तक
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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